मेरे लाल -अविष्कार १९७३
बासु भट्टाचार्य ने लीक से हटकर फिल्म बनाने का प्रयास किया
और बना -आविष्कार। ये आविष्कार जनता को पसंद नहीं आया।
कुछ अंग्रेजी फ़िल्में जो बेडरूम में घूमती हैं , वैसा ही कुछ रचने की
कोशिश । "सागा ऑफ़ लव " कहकर इसका प्रचार किया गया।
'सरसों दा सागा' खाते खाते मेरा दिमाग इतना ठस हो गया है कि
मुझे समझ ही नहीं पड़ा निर्देशक क्या बताना चाह रहा है इस फिल्म
में। किसी ने इसकी समीक्षा में लिखा की ये एक गंभीर फिल्म है और
इसको देखने और समझने के लिए धैर्य चाहिए। सही कहा उन श्रीमान ने ,
मैं बहुत धैर्य से पिछले कई साल से इस फिल्म को समझने का प्रयत्न
कर रहा हूँ। बासु भट्टाचार्य ने फ़िल्में तो बहुत सी बनायीं मगर चली नहीं।
वे डाक्यूमेंट्री बनाने के लिए ज्यादा पहचाने गए । डाक्यूमेंट्री आम दर्शक
तक पहुँचने में असफल रहती है जब तक उसमे आम जनता की दिलचस्पी
का मसाला ना हो।
बुद्धि जीवी बहुत से हुए हैं बॉलीवुड में और उनकी फिल्मों ने अपन प्रभाव भी
छोड़ा है जन मानस पर जिसमे बिमल रॉय एक नाम है। लीक से हटकर
फ़िल्में बनेवालों में ख्वाजा अहमद अब्बास और बी आर इशारा जैसे नाम भी हैं।
जिनको ये शिकायत है कि आम आदमी एक अच्छी कलाकृति की पहचान नहीं
कर पाता उनसे ये पूछा जाये कि एक 'गूदडों की गठरी' को मखमली कालीन बताने
का वाचाल प्रयास लम्बे समय तक नहीं चल पाता।
ये गीत एक कविता पाठ के समान है और लीक से थोडा हटकरबना गीत है ।
ज्ञानदेव अग्निहोत्री की पंक्तियों को गा रहे हैं मन्ना डे और इसका संगीत
तैयार किया है कनु रॉय ने। फिल्म का जो मजबूत पक्ष है वो इसका संगीत ही
है।
गीत के बोल:
मां को पुकारकर पूछा बच्चे ने
आया कहाँ से हूँ माँ बोलो तो
पड़ा कहाँ पाया गया बोलो तो
सुनकर सवाल ये
माँ के स्तनों से उफन पड़ा दूध
और बह आया आँखों से उत्तर
मेरे लाल
तुम तो हमेशा थे
मेरे मन की अभिलाषा मे
मेरे तन की परिभाषा मे
बचपन के गुड़ियाघर मे
कितनी बार तुझे खेलते-खेलते तोड़ा
तोड़ते-तोड़ते जोड़ा
पाकर खोया और खोकर पाया है
कहाँ से बताऊँ तू आया है
पड़ा तुझे मैने कहाँ पाया है
मेरे लाल
तू हाँ तू ही तो है मेरी अमर आशा
सुबह का सपना
माँ और दादी की सुनहरी ख़्वाहिश
प्रेम की परंपरा
ख्वाब की ख़्वाहिश और प्रेम की आशा
से बनी तेरी काया है
कहाँ से बताऊँ तू आया है
पड़ा तुझे मैने कहाँ पाया है
मेरे लाल
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