Jun 16, 2009

चल री सजनी अब क्या सोचे-बम्बई का बाबू १९६०

ये है बहुत प्रसिद्ध बिदाई गीत । मुकेश के गाये इस गीत ने
सफलता और प्रसिद्धि के मुकाम हासिल किए। बड़ी बड़ी
आँखों वाली सुचित्रा सेन हिन्दी फिल्मों में कम दिखाई दीं।
मुझे याद है मैंने चार हिन्दी फ़िल्में ही देखी हैं सुचित्रा सेन की
-चम्पाकली, ममता, आंधी और बम्बई का बाबू । एस डी बर्मन
का संगीतबद्ध किया ये गीत शादी ब्याह के अवसर पर नियमित
रूप से बजा करता था । इसके बाद आया फ़िल्म नीलकमल का
गीत बाबुल की दुआएं लेती जा। बहरहाल श्वेत श्याम के युग से
सबसे ज्यादा सुना जाने वाला बिदाई गीत यही है। शुरूआती कोरस
बस थोड़ा हाहाकार सा लगता है। मुकेश की गायकी लाजवाब है इस
गीत में । मजरूह सुल्तानपुरी ने एस डी बर्मन के साथ बढ़िया काम
किया है और कुछ यादगार गीत दिए हैं जिनका जिक्र अभी होना बाकी है।



गाने के बोल:

चल री सजनी अब क्या सोचे
चल री सजनी अब क्या सोचे
कजरा ना बह जाये रोते रोते
चल री सजनी अब क्या सोचे

बाबुल पछताए हाथों को मल के
काहे दिया परदेस टुकड़े को दिल के
बाबुल पछताए हाथों को मल के
काहे दिया परदेस टुकड़े को दिल के
आँसू लिये, सोच रहा, दूर खड़ा रे

चल री सजनी अब क्या सोचे
कजरा ना बह जाये रोते रोते
चल री सजनी अब क्या सोचे

ममता का आँगन, गुड़ियों का कंगना
छोटी बड़ी सखियाँ, घर गली अंगना
ममता का आँगन, गुड़ियों का कंगना
छोटी बड़ी सखियाँ, घर गली अंगना
छूट गया, छूट गया, छूट गया रे

चल री सजनी अब क्या सोचे
कजरा ना बह जाये रोते रोते
चल री सजनी अब क्या सोचे

दुल्हन बनके गोरी खड़ी है
कोई नही अपना कैसी घड़ी है
दुल्हन बनके गोरी खड़ी है
कोई नही अपना कैसी घड़ी है
कोई यहाँ, कोई वहाँ, कोई कहाँ रे

चल री सजनी अब क्या सोचे
कजरा ना बह जाये रोते रोते
चल री सजनी अब क्या सोचे

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