Aug 14, 2009

झुमका गिरा रे बरेली के बाज़ार में-मेरा साया १९६६

जैसा कि जिक्र होता रहा है इस ब्लॉग पर, कभी कभी
किसी संगीतकार की धुन किसी दूसरे संगीतकार के
अंदाज़ में बनायीं गयी सी प्रतीत होती है। इधर एक ऐसा
गीत है मदन मोहन का बनाया हुआ जो शुरू होता है आर डी
बर्मन की स्टाइल में, उसके बाद के वाद्य यन्त्र लक्ष्मीकान्त
प्यारेलाल की याद दिलाते हैं। उसके बाद का माहौल संगीतकार
रवि की याद दिलाता है। इसमें कहीं से भी ओ पी नय्यर के अंदाज़
की मिलावट नहीं है। गीत की खूबी ये है कि संगीत के विशेष
हिस्से पर एक डाकू अपनी ऑंखें मटकाता है। इस तरह की प्रतिक्रियाएं
आपको कुछ गीतों में मिलेंगी । ऐसे वाकये से वो कलाकार थोडा
चर्चा में आता है जिसको केमरा ऐसे कुछ विशेष करतब करते हुए
पकड़ता है। ये सब तिकड़में गीत को रोचक बनाने के लिए आजमाई
जाती हैं।



गीत के बोल:

झुमका गिरा रे, हाय
झुमका गिरा रे, बरेली के बाज़ार में
झुमका गिरा रे, बरेली के बाज़ार में
झुमका, गिरा झुमका, गिरा झुमका
गिरा, हाय हाय हाय
झुमका गिरा रे, बरेली के बाज़ार में
झुमका गिरा रे

सैयां आये नैन झुकाए घर में चोरी चोरी
सैयां आये नैन झुकाए घर में चोरी चोरी
बोले झुमका मैं पहना दूं, आ जा बांकी छोरी
मैं बोली ना ना ना बाबा, ना कर जोरा जोरी
लाख छुड़ाया, सैयां ने कलैया नाहीं छोड़ी
हाय कालिया नाहीं छोड़ी
फिर क्या हुआ?
फिर? फिर झुमका गिरा रे, हम दोनों की तकरार में
झुमका गिरा रे, बरेली के बाज़ार में
झुमका गिरा रे

घर की छत पे मैं कड़ी, गली में दिलबर जानी
घर की छत पे मैं कड़ी, गली में दिलबर जानी
हंसके बोले नीचे आ, अब नीचे आ दीवानी
या अंगूठी दे अपनी या छल्ला दे निशानी
घर की छत पे खड़ी खड़ी मैं हुयी शर्म से पानी
हाय हुयी शर्म से पानी
फिर क्या हुआ?
दैया, फिर झुमका गिरा रे, हम दोनों के इस प्यार में
झुमका गिरा रे बरेली के बाज़ार में
झुमका गिरा रे

बगिया में बलमा ने मेरी लट उलझी सुलझाई
बगिया में बलमा ने मेरी लट उलझी सुलझाई
थमके आँचल बोले, गोरी तू मेरे मान भाई
आँख झुका के कुछ ना बोली
कुछ ना बोली हाय, हाय,
आँख झुका के कुछ ना बोली, धीरे से मुस्काई
सैयां ने जब छेड़ा मुझको, हो गयी हाथापाई
हाय हो गयी हाथापाई
तो फिर क्या हुआ?
हंह हंह हंह हंह
फिर झुमका गिरा रे, मैं क्या बोलूँ बेकार में
झुमका गिरा रे, बरेली के बाज़ार में

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