हाए तबस्सुम तेरा - निशान १९६५
एक पुराना गीत है श्वेत-श्याम के युग का। फ़िल्म का नाम है
निशान। इसमे संजीव कुमार हीरो की भूमिका में है। संगीतकार
उषा खन्ना हैं। ये गाना रफ़ी के सबसे बढ़िया रोमांटिक गीतों में
गिना जाता है। उषा खन्ना ने बढ़िया नशीली धुन बनाई है जो आज
भी मदमस्त कर जाती है। इस गाने को रात में सुनने का अलग ही
आनंद है। इसलिए शायद ये गीत छाया-गीत, (विविध भरती का एक
प्रोग्राम जो रात दस बजे से साढे दस बजे तक प्रसारित किया जाता
रहा है) में अक़्सर बजा करता था। फिल्म निशान सन १९६५ की
फिल्म है।
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गाने के बोल:
हाए तबस्सुम तेरा
हाए तबस्सुम तेरा
धूप खिल गई रात में
या बिजली गिरी बरसात में
हाए तबस्सुम तेरा
हाए तबस्सुम तेरा
पलकों की चिलमन उठाना
धीरे से ये मुस्कुराना
पलकों की चिलमन उठाना
लब जो हिले, जुल्फों टेल
छाया गुलाबी अँधेरा
हाए तबस्सुम तेरा
धूप खिल गई रात में
या बिजली गिरी बरसात में
हाए तबस्सुम तेरा
हाए तबस्सुम तेरा
रोको न अपनी हँसी को
जीने दो वल्लाह किसी को
रोको न अपनी हँसी को
तेरी हँसी रुक जो गई
रुक जाएगा साँस मेरा
हाए तबस्सुम तेरा
धूप खिल गई रात में
या बिजली गिरी बरसात में
हाए तबस्सुम तेरा
हाए तबस्सुम तेरा
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