घूंघट हटा न देना गोरिये -सपने सुहाने 1961
गीता बाली पर फिल्माया गया ये गाना उतना प्रसिद्ध नहीं
हुआ जितना इसको होना चाहिए था। एक मधुर गीत शैलेन्द्र की
लेखनी से निकला हुआ और सलिल द्वारा धुन बद्ध किया हुआ आज भी
कभी कभार रेडियो पर सुनने को मिल जाता है। लता मंगेशकर की आवाज़
है इस गाने में। गीता बाली के ऊपर जितने भी गीत फिल्माए गए हैं
अधिकतर देखने लायक हैं। गाने में नई नवेली दुल्हन के साथ
छेड़ छाड़ है जो की गाने के बोलों से स्पष्ट है । गीत में गरिमा का
बहुत ध्यान रखा गया है।
गाने के बोल:
घूंघट हटा न देना गोरिये
चंदा शर्म से डूबेगा
कहीं मुस्कुरा न देना बलिये
चंदा शर्म से डूबेगा
घूंघट हटा न देना गोरिये
चंदा शर्म से डूबेगा
कहीं मुस्कुरा न देना बलिये
चंदा शर्म से डूबेगा
देख के तेरे गाल गुलाबी
भंवरा धोखा खाए
तेरे तीरे का मारा
मुख से पानी मांग न पाये
ये घूंघट,ये घूंघट, ये घूंघट,
घूंघट हटा न देना गोरिये
चंदा शर्म से डूबेगा
कहीं मुस्कुरा न देना बलिये
चंदा शर्म से डूबेगा
चद्ती उमर मचलती नदिया
मस्ती में लहराए
फूल किनारा कुछ न देखे
बहा के सब ले जाए
ये घूंघट,ये घूंघट, ये घूंघट,
घूंघट हटा न देना गोरिये
चंदा शर्म से डूबेगा
कहीं मुस्कुरा न देना बलिये
चंदा शर्म से डूबेगा
कजरारी , मतवारी, रसभरी अंखियों से होए
घूंघट...............
बोल तेरे मिसरी से मीठे
जो सुन ले लुट जाए
जगमग करे रूप उजियाला
दीपक कौन जलाये
ये घूंघट,ये घूंघट, ये घूंघट,
घूंघट हटा न देना गोरिये
चंदा शर्म से डूबेगा
कहीं मुस्कुरा न देना बलिये
चंदा शर्म से डूबेगा
कजरारी .....
घूंघट........
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