Oct 28, 2009

इंसान बनो- बैजू बावरा १९५२

ज्यादा बारूद खर्च करने से स्वर्ण पदक नहीं मिला करते ।
इसलिए इस गीत के साथ ज्यादा विवरण न देते हुए केवल
इसके बोल दे रहा हूँ । ये उन सभी के लिए है जो चुपचाप
आके ब्लॉग पे नज़र मार जाते हैं और दूसरे तीसरे दिन
वो गाना यू-ट्यूब से गायब मिलता है। कुछ ख़ास सदस्यों के
विडियो यू-ट्यूब पर कायम रहते हैं जिन्होंने एम्बेडिंग को
डिसएबल कर रखा है । सोचता हूँ केवल म्यूजिक
कम्पनी के विडियो का लिंक ही दिया करुँ जो कमसे कम
कायम तो रहेगा । उस भली आत्मा का धन्यवाद् जिसने
बैजू बावरा का मेरा पसंदीदा गीत यू-ट्यूब पर लोड किया।

ब्लॉग जगत पर भी ड्रामा तो वही है जो दूसरी जगह होता
है । आख़िर आदमी तो वही है चाहे ब्लॉग पे हो या
स्नानघर में । अब मेरे पास दूसरे ब्लॉग रचनाकारों की
तरह न इतना टाइम है न फुर्सत कि ४-५ छद्म आइ. डी.
बना के वाह वाह लिखता फिरूं ।

ब्लॉग जगत की 'उड़ती वस्तुएं' और 'एलिएन' शायद
इस ब्लॉग को दूसरे ग्रह का मसाला मानते हैं, इसलिए
यहाँ टिप्पणियां ज्यादा नहीं है । वैसे मैं उनको धन्यवाद्
देना चाहूँगा इस ब्लॉग को साफ़ सुथरा बनाये रखने में
योगदान देने के लिए । टिप्पणी दे उसका भला, जो ना दे
उसका भी भला।



गाने के बोल:

निर्धन का घर लूटने वालों
लूट लो दिल का प्यार
प्यार वो धन है जिसके आगे
सब धन हैं बेकार
ओ ...............

इंसान बनो
कर लो भलाई का कोई काम
इंसान बनो

दुनिया से चले जाओगे
रह जाएगा बस नाम
इंसान बनो

हो, इस बाग़ में सूरज भी निकलता है लिए गम
फूलों की हँसी देख के रो देती है शबनम

कुछ देर की खुशियाँ हैं तो कुछ देर का मातम
किस नींद में हो ?
किस नींद में हो, जागो ज़रा, सोच लो अंजाम

इंसान बनो

हो, लाखों यहाँ शान अपनी दिखाते हुए आए
दम भर के लिए लाज गए धूप में साए

वो भूल गए थे के ये दुनिया है सराय
आता है कोई,
आता है कोई सुबह तो, जाता है कोई शाम

इंसान बनो

हो, क्यूँ तुमने लगाये हैं यहाँ ज़ुल्म के डेरे
धन साथ न जाएगा, बने क्यूँ हो लुटेरे

पीते हो गरीबों का लहू शाम सवेरे
ख़ुद पाप करो,
ख़ुद पाप करो, नाम हो शैतान का बदनाम

इंसान बनो
कर लो भलाई का कोई काम
इंसान बनो

दुनिया से चले जाओगे
रह जाएगा बस नाम
इंसान बनो

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