Oct 28, 2009

ये रेशमी जुल्फें-दो रास्ते १९६९

ओवर साइज़ चश्मे का फैशन उन दिनों पर जोरों पर था।
एक दाढ़ी वाला लड़का भी रोमांटिक गीत गा सकता है ।
राजेश खन्ना को दाढ़ी में बहुत की कम गानों में देखा है
इसलिए थोड़ा अचम्भा सा होता है उनके फेंस को। ये
एक फेंसी ड्रेस जैसी कुछ प्रतियोगिता हो रही है गाने में
जिसमे हीरो को बड़े बड़े चश्मे के पीछे छिपे हिरोइन के चेहरे
को ढूंढ़ना है और फ़िर गीत गाना है। शरबती शब्द सुनकर
ऑंखें कम और शरबती गेहूं ज्यादा याद आता है जो आजकल
महंगा है और कई जगह के बाज़ारों से गायब है। आप भी इस पोस्ट
की चुटकियों के साथ साथ एक अपने ज़माने के हिट गीत का आनंद
उठायें। गीत पहचानिये किसका लिखा हुआ है ! नाम याद ना आए
तभी इसके टैग पर नज़र डालियेगा। संगीत है लक्ष्मीकांत प्यारेलाल का।



गीत के बोल:

ये रेशमी जुल्फें, ये शरबती आँखे
इन्हे देखकर जी रहे हैं सभी

जो ये आँखे शर्म से जुक जायेगी
सारी, बातें यही बस रुक जायेगी
चुप रहना, ये अफसाना,
कोई इनको ना बतलाना
के इन्हे देखकर पी रहे हैं सभी

ये रेशमी जुल्फें, ये शरबती आँखे
इन्हे देखकर जी रहे हैं सभी

जुल्फे मगरूर इतनी हो जायेगी
दिल को तड़पायेगी, जी को तरसाएगी
ये कर देंगी दीवाना, कोई इन को ना बतलाना
के इन्हे देखकर जी रहे हैं सभी

ये रेशमी जुल्फें, ये शरबती आँखे
इन्हे देखकर जी रहे हैं सभी
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Ye resmi zulfen-Do raaste 1969

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