बाबुल मोरा-स्ट्रीट सिंगर १९३७
सहगल के गाये गीत अमर गीतों की श्रेणी में आते हैं।
आज की पीड़ी के गायक भी उनकी गायकी से प्रभावित हैं।
उनके गीतों में से सबसे ज्यादा प्रभाव अगर किसी गीत ने
छोड़ा है तो वो है -बाबुल मोरा नैहर छूटो ही जाए । गीत लिखा
था वाजिद अली शाह ने। वाजिद अली शाह अवध के नवाब थे
जिनका राज़ १८४७ से १८५६ तक चला। कला और संस्कृति प्रेमी थे।
उनके राज़ में कला और संस्कृति अपने पूरे शबाब पर थी।
ये एक ठुमरी है जो कई कलाकारों ने अपने अपने अंदाज़ में गाई है।
सहगल के गाये गीत की धुन बनाई है आर सी बोराल ने । इस गीत में
सहगल ख़ुद हारमोनियम लेकर घूमते हुए गा रहे हैं। घूमते घूमते गाना
और रिकॉर्डिंग करना एक दुष्कर कार्य है । इस पर आवाज़ एक सरीखी
बनाये रखना एक चैलेन्ज जैसा है। ठुमरी भैरवी बड़े गुलाम अली साहब
और सहगल की आवाज़ में सुनना एक सुखदायी अनुभव है।
गाने के बोल:
बाबुल मोरा, नैहर छूटो ही जाए
बाबुल मोरा नैहर छूटो जाए
मोरा, नैहर छूटो ही जाए
चार कहार मिले
मोरी डोलिया सजावें
मोरा अपना बेगाना छूटो जाए
मोरा नैहर आ आ आ ...
छूटो ही जाए
अंगना तो परबत भया
और देहरी भई बिदेश
ले घर बाबुल आपनो
मैं चली पिया के देश
बाबुल मोरा नैहर छूटो जाए
मोरा, नैहर छूटो ही जाए
0 comments:
Post a Comment