आए भी अकेला-दोस्त १९५४
दिन में एक बार ये अहसास जरूर होता है
जैसा कि इस तलत महमूद द्वारा गए गीत में
व्यक्त हुआ है। बोल लिखे हैं वर्मा मालिक ने और धुन
बनाई है पंजाबी मूल के एक गुणी संगीतकार हंसराज
बहल ने। "दो दिन की ज़िन्दगी है दो दिन का मेला.........."
फ़िल्म दोस्त का ये गाना सन१९५४ से लगातार बज
रहा है और जब तक हिन्दी फ़िल्म संगीत का सफर
चलता रहेगा, शायद बजता मिले। पब्लिक दोस्तों को
छोड़ देती है , दुनियादारी और दुनिया को नहीं छोड़ती।
माडर्न ज़माने का यही दस्तूर है , क्या किया जाए।
गाने के बोल:
आए भी अकेला, जाए भी अकेला
दो दिन की ज़िन्दगी है, दो दिन का मेला
दो दिन का मेला
आए भी अकेला, जाए भी अकेला
दो दिन की ज़िन्दगी है, दो दिन का मेला
दो दिन का मेला
तेरी ज़िन्दगी मौज है दो घड़ी की
ये बातें हैं नादाँ, सब जीते जी की
सब जीते जी की
ये दुनिया हुई है, ना होगी किसी की
वही एक मंजिल है हर आदमी की
हर आदमी की
जहाँ सब को जाना पड़ेगा अकेला
दो दिन की ज़िन्दगी है, दो दिन का मेला
दो दिन का मेला
आए भी अकेला, जाए भी अकेला
दो दिन की ज़िन्दगी है, दो दिन का मेला
दो दिन का मेला
एक बार साथ दे के साथ ना छोड़ना
जान जाए तो जाए, दोस्ती ना तोड़ना
दोस्ती ना तोड़ना
नज़रें ना फेर लेना, मुंह को ना मोड़ना
दुनिया को छोड़ देना, यार को ना छोड़ना
यार को ना छोड़ना
देखो मनसूर कैसे, जान पे खेला
दो दिन की ज़िन्दगी है, दो दिन का मेला
दो दिन का मेला
आए भी अकेला, जाए भी अकेला
दो दिन की ज़िन्दगी है, दो दिन का मेला
दो दिन का मेला
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