Oct 25, 2009

जा रे कारे बदरा-धरती कहे पुकार के १९६९

प्रस्तुत गीत, गीतकार मजरूह सुल्तानपुरी का लिखा हुआ है।
ये गाना मुझे बेहद पसंद है विशेषकर इसका तीसरा अंतरा ।
ऐसा अक्सर होता है की आपको गाने का कोई ख़ास अंतरा
याद रह जाता है । इस अंतरे को याद रखने के पीछे वजह ये
है कि ये फ़िल्म में दो बार सुनाई पड़ता है।

मुझे अपनी पोस्ट में पसंद शब्द का इस्तेमाल करते हुए अब
डर लगने लगा है. जिस पोस्ट में ये लिख देता हूँ उसका वीडियो
यूट्यूब से स्वर्गवासी हो जाता है या एलियन हो जाता है.

भावनाओं से परिपूर्ण इस गीत के लिए  लक्ष्मीकांत प्यारेलाल
को पूरे नम्बर १० में से १० । गीत फिल्माया गया है अभिनेत्री
नंदा पर और वे इसे गा रही हैं नायक जीतेंद्र के लिए। फ़िल्म
का नाम है "धरती कहे पुकार के" । इस फ़िल्म के सारे गाने
बढ़िया हैं ।

पढ़ते(कॉपी कर कर के सेव करते) रहिये ये ब्लॉग ...........



गाने के बोल:

जा रे कारे बदरा बलमू के द्वार
वो हैं ऐसे बुद्धू न समझे रे प्यार

जा रे कारे बदरा बलमू के द्वार
वो हैं ऐसे बुद्धू न समझे रे प्यार

किन की पलक से पलक मोरी उलझी
निपट अनाड़ी से लट मोरी उलझी
के लट उलझा के मैं तो गई हार
वो हैं ऐसे बुद्धू न समझे रे प्यार
वहीँ जाके रो..................

जा रे कारे बदरा बलमा के द्वार
वो हैं ऐसे बुद्धू न समझे रे प्यार

अंग उन्ही की लहरिया समायी
कबहूँ न पूछे लूँ काहे अंगडाई
के सौ सौ बल खा के मैं तो गई हार
वो हैं ऐसे बुद्धू न समझे रे प्यार

थाम लो बैयाँ चुनर समझावे
गरबा लगा लो कजर समझावे
के सब समझा के मैं तो गई हार
वो हैं ऐसे बुद्धू न समझे रे प्यार
वहीँ जा के रो..................

जा रे कारे बदरा बलमा के द्वार
वो हैं ऐसे बुद्धू न समझे रे प्यार
....................................................................
Ja re kaare badra-Dharti kahe pukar ke 1969

Artist: Nanda, Jeetendra

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