बचपन के दिन भुला ना देना-दीदार 1951
इस गीत की शुरुआती धुन से मुझे हमेश दूसरा गीत याद आता था।
"बचना ज़रा ये ज़माना है बुरा , कभी मेरी गली में ना आना " । फ़िल्म दीदार
के इस गीत को सुनने के पहले मैंने दूसरा गीत सुन रखा था, इसलिए ऐसा हुआ।
"बचपन के दिन" फ़िल्म दीदार का सबसे घिसा हुआ अर्थात बजा हुआ गीत है।
धीमा और मधुर गीत, इसके बोल शकील बदायूनी के हैं और धुन नौशाद की ।
इसे गाया है लता मंगेशकर और शमशाद बेगम ने । इसमे आपको बेबी तबस्सुम
दिखाई दें जाएँगी । घोड़े की टिप टाप वाला ये गीत आज भी उतना ही जवान सुनाई
देता है। इन बच्चों ने फ़िल्म में नर्गिस और दिलीप कुमार के बचपन की भूमिका
निभाई है।
गाने के बोल
हो ओ, बचपन के दिन भुला ना देना
हो ओ, बचपन के दिन भुला ना देना
आज हँसे कल रुला ना देना
आज हँसे कल रुला ना देना
हो ओ,बचपन के दिन भुला ना देना
लंबे हैं जीवन के रस्ते
आओ चलें हम गाते-हँसते
लंबे हैं जीवन के रस्ते
आओ चलें हम गाते हँसते
गाते हँसते
दूर देश एक महल बनाएं
प्यार का जिसमें दीप जलाएं
दूर देश एक महल बनाएं
प्यार का जिसमें दीप जलाएं
दीप जलाएं
दीप जलाकर बुझा ना देना
आज हँसे कल रुला ना देना
हो ओ, बचपन के दिन भुला ना देना
रुत बदले या जीवन बीते
दिल के तराने हों ना पुराने
रुत बदले या जीवन बीते
दिल के तराने हों ना पुराने
हा हा हा , हा हा हा , हा हा हा हा हा
नैनों में बन कर सपन सुहाने
आयेंगे एक दिन यही ज़माने
हा हा हा , आ आ आ
नैनों में बन कर सपन सुहाने
आयेंगे एक दिन यही ज़माने
यही ज़माने
याद हमारी मिटा ना देना
आज हँसे कल रुला ना देना
हो ओ बचपन के दिन भुला ना देना
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