दो दिन के लिए मेहमान यहाँ-बादल १९५१
जो गीत मधुबाला पर फिल्माए गए हैं वे अपने आप में
निराले हैं। अप्रतिम सौंदर्य के साथ ही उनका अभिनय भी
तारीफ़ ऐ काबिल था। कोई दर्द भरा उनपर फिल्माया गया
गीत आपको देखने को मिले तो समझिये वो तराशा हुआ
हीरा आप तक पहुँच गया है। ऐसा ही एक गीत है फ़िल्म
बादल से -"दो दिन के लिए मेहमान यहाँ "। सरल शब्दों
से मर्म पर चोट करने में शैलेन्द्र का कोई सानी नहीं था।
लता मंगेशकर द्वारा गाये सर्वश्रेष्ठ दर्द भरे गीतों में इसकी
गिनती होती है। मधुरता की पराकाष्ठा पर हुआ करती थी
लता मंगेशकर की आवाज़ ५० के दशक में । धुन तैयार
की है शंकर जयकिशन ने। इस गीत में आपको भविष्य
की माधुरी दीक्षित की हलकी सी झलक आएगी।
गीत के बोल:
दो दिन के लिए मेहमान यहाँ
मालूम नहीं मंजिल है कहाँ
अरमान भरा दिल तो है मगर
जो दिल से मिले वो दिल है कहाँ
एक फूल जला एक फूल खिला
कुछ अपना लुटा कुछ उनको मिला
एक फूल जला एक फूल खिला
कुछ अपना लुटा कुछ उनको मिला
कैसे करें किस्मत से गिला हम
कैसे करें किस्मत से गिला
रंगीन हर एक महफ़िल है कहाँ
दो दिन के लिए मेहमान यहाँ
मालूम नहीं मंजिल है कहाँ
दुनिया में सवेरा होने लगा
दुनिया में सवेरा होने लगा
इस दिल में अन्धेरा होने लगा
हर ज़ख्म सिसक के रोने लगा
हर ज़ख्म सिसक के रोने लगा
किस मुंह से कहें कातिल है कहाँ
दो दिन के लिए मेहमान यहाँ
मालूम नहीं मंजिल है कहाँ
जलता है जिगर उठता है धुंआ
आंखों से मेरी आंसू हैं रवां
जलता है जिगर उठता है धुंआ
आंखों से मेरी आंसू हैं रवां
मरने से हो जाए अता जो
मरने से हो जाए अता
ऐसी ये मेरी मुश्किल है कहाँ
दो दिन के लिए मेहमान यहाँ
मालूम नहीं मंजिल है कहाँ
दो दिन के लिए.....
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