Nov 8, 2009

इतनी नाज़ुक न बनो - वासना १९६८

ये गीत कुछ संगीत भक्तों की नज़र में सबसे रोमांटिक गीत है।
कुछ की नज़र में ये नसीहत जैसा है। हीरो अपनी हिरोइन की
नजाकत पर कुछ टीका टिप्पणी कर रहा है गीत के माध्यम से।
टीका टिप्पणी साहिर की कलम से निकले हैं तो असरदार होना
स्वाभाविक है। छुई मुई सी कमनीय काया पर व्यंग्य किया गया है
सीधे सपाट शब्दों में। संगीत है चित्रगुप्त का। ये गीत आकाशवाणी और
आल इंडिया रेडियो पर खूब बजा है। फ़िल्म ज्यादा चर्चित नहीं है।



गाने के बोल:

इतनी नाज़ुक ना बनो, हाय, इतनी नाज़ुक ना बनो

हद के अन्दर हो नज़ाकत तो अदा होती है
हद से बढ़ जाये तो आप अपनी सज़ा होती है

इतनी नाज़ुक ना बनो...

जिस्म का बोझ उठाये नहीं उठता तुमसे
ज़िंदगानी का कड़ा बोझ सहोगी कैसे
तुम जो हलकी सी हवाओं में लचक जाती हो
तेज़ झोंकों के थपेड़ों में रहोगी कैसे

इतनी नाज़ुक ना बनो...

ये ना समझो के हर इक राह में कलियां होंगी
राह चलनी है तो कांटों पे भी चलना होगा
ये नया दौर है इस दौर में जीने के लिये
हुस्न को हुस्न का अन्दाज़ बदलना होगा

इतनी नाज़ुक ना बनो...

कोइ रुकता नहीं ठहरे हुए राही के लिये
जो भी देखेगा वो कतरा के गुज़र जायेगा
हम अगर वक़्त के हमराह ना चलने पाये
वक़्त हम दोनो को ठुकरा के गुज़र जायेगा

इतनी नाज़ुक ना बनो...
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Itni nazuk na bano-Vasna 1968

Artist: Bishwajeet

2 comments:

Anonymous,  March 16, 2017 at 7:41 AM  
This comment has been removed by a blog administrator.
Geetsangeet June 8, 2017 at 5:40 PM  

कहीं आपने किसी दवाई वाले बाबाजी के ब्लॉग के लिया बनाया हुआ
कमेन्ट गलती तो यहाँ पोस्ट नहीं कर दिया ?

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