Nov 8, 2009

ओ हसीना ज़ुल्फोंवाली-तीसरी मंजिल १९६६

सीखने के सबके अलग अलग तरीके होते हैं। कोई देख देख के
सीखता है, कोई सुन सुन के। इसके अलावा सीखना का दौर
चलता रहता है जिसमे आप पहले से समझे हुए मसले को थोड़ा
थोड़ा समय के साथ संशोधित करते चलते हैं। एक नाम पट्टिका
देखते थे सालों पहले जिसपे लिखा था पी. इमरत । उसको देखते
देखते एक दिन ये गाना सुनाई दिया ओ हसीना।

तो साहेब हमारे दिमाग ने उसको यूँ समझा ओ. हसीना । फ़िल्म
भी जल्द ही देखने को मिल गई।
फ़िल्म देखने के बाद मालूम पड़ा की ओ .हसीना किसी हिरोइन का
नाम नहीं बल्कि सुंदर स्त्री को संबोधन दिया जा रहा है। ये गाना है
फ़िल्म तीसरी मंजिल का जो १९६६ में आई।

इस गाने में आशा भोंसले और रफी की आवाजें हैं, राहुल देव बर्मन
का संगीत है। इस गाने की सुंदरी हैं हेलन। गाने में आशा पारेख भी
दिखाई देंगी आपको जो कुछ सक्रिय, कुछ अक्रिय सी होटल की एक
टेबल पर कुर्सी के सहारे टिकी हुई हैं।



गाने के बोल:

ओ हसीना जुल्फों वाली जाने जहाँ
ढूँढती हैं काफ़िर आँखें किसका निशाँ
ओ हसीना जुल्फों वाली जाने जहाँ
ढूँढती हैं काफ़िर आँखें किसका निशाँ
महफिल महफिल ए शमा, फिरती हो कहाँ
महफिल महफिल ए शमा, फिरती हो कहाँ

वो अनजाना ढूँढती हूँ, वो दीवाना ढूँढती हूँ
जलाकर जो छिप गया है, वो परवाना ढूँढती हूँ

गर्म है, तेज़ है यह निगाहें मेरी
काम आ जायेगी सर्द आहें मेरी
अरे तुम किसी राह में तो मिलोगे कहीं
अरे इश्क हूँ, मैं कहीं ठहरता ही नहीं
मैं भी हूँ गलियों की परछाई, कभी यहाँ कभी वहां
शाम ही से कुछ हो जाता है मेरा भी जादू जवान

ए, ओ हसीना ज़ुल्फोंवाली जाने जहाँ
ढूँढती हैं काफ़िर आँखें किसका निशाँ
महफिल महफिल ए शमा, फिरती हो कहाँ
महफिल महफिल ए शमा, फिरती हो कहाँ

वो अनजाना ढूँढती हूँ, वो दीवाना ढूँढती हूँ
जलाकर जो छिप गया है, वो परवाना ढूँढती हूँ

हाँ दिल विल प्यार व्यार यूँही बदनाम है
ऐसी बदनामियों का वफ़ा नाम है
ओह ओह ओह, क़त्ल कर के चले, यह वफ़ा खूब है
हाय नादाँ तेरी यह अदा खूब है
मैं भी हूँ गलियों की परछाई, कभी यहाँ कभी वहां
शाम ही से कुछ हो जाता है मेरा भी जादू जवान

हे, ओ हसीना ज़ुल्फोंवाली जाने जहाँ
ढूँढती हैं काफ़िर आँखें किसका निशाँ
ओ हसीना ज़ुल्फोंवाली जाने जहाँ
ढूँढती हैं काफ़िर आँखें किसका निशाँ
महफिल महफिल ए शमा, फिरती हो कहाँ
महफिल महफिल ए शमा, फिरती हो कहाँ

वो अनजाना ढूँढती हूँ, वो दीवाना ढूँढती हूँ
जलाकर जो छिप गया है, वो परवाना ढूँढती हूँ
...............................................................
O haseena Zulfon wali-Teesri manzil 1966

Artists: Shammi Kapoor, Asha Parekh, Helen

0 comments:

© Geetsangeet 2009-2020. Powered by Blogger

Back to TOP