तेरी तसवीर भी तुझ जैसी-किनारे किनारे १९६३
प्यार और सब्र की कोई इन्तहा नहीं होती.....
फिल्म: किनारे किनारे
वर्ष: १९६३
गीतकार: न्याय शर्मा
संगीतकार: जयदेव
गायक: रफ़ी
..................
गीत के बोल:
तेरी तसवीर भी तुझ जैसी हसीं है लेकिन
इस पे क़ुर्बान मेरी जान-ए-हज़ीं है लेकिन
ये मेरी ज़ख़्मी उमंगों का मदावा तो नहीं
हाल-ए-दिल इस बुत-ए-काफ़िर को सुनाऊँ कैसे
इसके रुख़्सारों की शादाबी को छेड़ूँ क्योंकर
इसके होंठों के तबस्सुम को जगाऊँ कैसे
तेरी तसवीर भी तुझ जैसी हसीं है लेकिन
ज़ब्त की ताब न कहने का सलीका मुझको
उस पे ये ज़ुर्म के, ख़ामोश है तसवीर तेरी
घुट के मर जाऊँ मगर, किसी को ख़बर तक भी न हों
कैसी चट्टानों से, टकराई है तक़दीर मेरी
यही तसवीर तसव्वुर में उतर जाने पर
चाँद की किरणों से गो बढ़के निखर जाती है
दर्द पलकों से लिपट जाता है आँसू बन कर
मेरी एहसास की दुनिया ही बिखर जाती है
इस लिये तेरी तसव्वुर से नहीं ख़ुद तुझसे
इल्तिजा करता हूँ बस इतना बता दे मुझको
क्या मेरी दिल की तड़प का तुझे एहसास भी है
क्या मेरी दिल की तड़प का तुझे एहसास भी है
वर्ना फिर मेरी ही वहशत में सुला दे मुझको
तेरी तसवीर भी तुझ जैसी हसीं है लेकिन
इस पे क़ुर्बान मेरी जान-ए-हज़ीं है लेकिन
ये मेरी ज़ख़्मी उमंगों का मदावा तो नहीं
0 comments:
Post a Comment