सैयां बिना घर सूना-आँगन की कली १९७९
बप्पी लहरी उन चुनिन्दा संगीतकारों में से हैं जो बहुत से
वाद्य यंत्रों को बजाने की क्षमता रखते हैं। उनकी रचनायें आपको
कसी हुई मिलती हैं। चाहे कैसा भी गीत हो, उनका संगीत पक्ष
मजबूत हुआ करता है। ये विश्लेषण उन संगीत रसिकों के बस के
बाहर है जो बप्पी के संगीत को केवल झोपडी , चारपाई या चिकन
फ्राई गीतों से जोड़कर देखते हैं और उनके संगीत का विस्तृत दायरा
नहीं देखना और समझना चाहते।
इधर एक कर्णप्रिय गीत पेश है फिल्म 'आँगन की कली' से जो
एक युगल गीत है भूपेंद्र और लता मंगेशकर की आवाज़ में। गीत
लिखा है शैली शैलेन्द्र ने जो कि गीतकार शैलेन्द्र के पुत्र हैं।
गीत के बोल:
सैयां बिना घर सूना, सूना
सैयां बिना घर सूना
राही बिना जैसी सूनी गलियां
बिन ख़ुशबू जैसी सूनी कलियाँ
सैयां बिना घर सूना, सूना
सैयां बिना घर सूना
सूना दिन काली रतियाँ
अंसुवन से भीगी तकियां
हर आहात पे दरी दरी
राह तके मेरी अँखियाँ
सूना दिन काली रतियाँ
अंसुवन से भीगी तकियां
हर आहात पे दरी दरी
राह तके मेरी अँखियाँ
चाँद बिना जैसे सूनी रतियाँ
फूल बिना जैसे सूनी बगिया
सैयां बिना घर सूना
सैयां बिना घर सूना, सूना
सैयां बिना घर सूना, सूना
सैयां बिना घर सूना
अंधियारे बादल छाये
कुछ भी ना मान को भाये
देख अकेली घेरे मुझे
यादों के काले साए
अंधियारे बादल छाये
कुछ भी ना मान को भाये
देख अकेली घेरे मुझे
यादों के काले साए
चाँद बिना जैसे सूनी रतियाँ
फूल बिना जैसे सूनी बगिया
सैयां बिना घर सूना, सूना
सैयां बिना घर सूना
आंसू यूँ ना बहाओ,
ये मोती ना लुटाओ
रूकती नहीं है वक़्त की धारा
पल पल बदले जग ये सारा
रूकती नहीं है वक़्त की धारा
पल पल बदले जग ये सारा
जैसे ढलेगी रात अँधेरी
मुस्काएगा सूरज प्यारा
सुख के लिए पड़े दुःख भी सहना
अब ना कभी फिर तुम ये कहना
सैयां बिना घर सूना, सूना
सैयां बिना घर सूना
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