अब क्या मिसाल दूं मैं तुम्हारे शबाब की-आरती १९६२
पिछली पोस्ट में आपने पढ़ा कि नायक नाउम्मीदी के भंवर से निकलने की
जद्दो जहद में लगा है और उसको इस चक्र से एक नायिका निकाल रही है।
इस गीत तक पहुँच कर नायक को दुनिया हरी भरी नज़र आने लगी है और
वो नायिका की तारीफ़ में एक बढ़िया रोमांटिक गीत गाता है। फिल्म आरती
का ये गीत एक चर्चित और कर्णप्रिय गीत है, जिसको बहुत आहिस्ता से गाया
गया है। उपमाओं का ये साहित्यिक 'उसल-मीसल' आपको ज़रूर पसंद आएगा।
कितना फर्क आया है श्वेत श्याम और रंगीन युग में प्रेम के इज़हार के मामले में।
आज के दौर में पहाड़ के ऊपर चढ़ के सबसे ऊंचे सुर में चीख के नायक बतलाता
है कि उसकी प्रेमिका कैसी और कितनी सुन्दर है।
चन्द्रमा की किरण को मजरूह साहब ने इंसान बनवा दिया है इस गीत में।
गीत के बोल:
अब क्या मिसाल दूं मैं तुम्हारे शबाब की
इंसान बन गयी है किरण माहताब की
अब क्या मिसाल दूं
चेहरे में घुल गया है हसीं चांदनी का नूर
आँखों में है चमन की जवां रात का सुरूर
गर्दन है इक झुकी हुयी डाली,
डाली गुलाब की
अब क्या मिसाल दूं मैं तुम्हारे शबाब की
अब क्या मिसाल दूं
गेसू खुले तो शाम के दिल से धुंआ उठे
छू ले कदम तो झुक के ना फिर आस्मां उठे
सौ बार झिलमिलाये शमा,
शमा आफ़ताब की
अब क्या मिसाल दूं
दीवार-ओ-दर का रंग ये आँचल ये पैरहन
घर का मेरे चिराग है बूटा सा ये बदन
तस्वीर हो तुम्ही मेरे जन्नत के
जन्नत के ख्वाब की
अब क्या मिसाल दूं मैं तुम्हारे शबाब की
इंसान बन गयी है किरण माहताब की
अब क्या मिसाल दूं
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Ab kya misaal doon main tumhare shabab ki-Aarti 1962
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