पिंजरे के पंछी रे, तेरा दर्द न जाने-नागमणि १९५७
दुविधा और कशमकश के प्रसंगों में आत्मसात करने की असफल
कोशिश करता हूँ मैं । कवि प्रदीप का लिखा ये गीत सन १९५७ से
निरंतर कहीं ना कहीं बजता सुनाई दे जाता है। कभी मंदिर में तो
कभी किसी सामाजिक कार्यक्रम में। इस गीत के अनुसार ही मैंने भी
यही अनुभव किया है कि अपनी व्यथा अपने मन तक ही सीमित
रखने में ज्यादा लाभ है। कविवर प्रदीप ने स्वयं इस गीत को गाया है
और इसकी धुन बनाई है गुजरती मूल के प्रतिभाशाली संगीतकार
अविनाश व्यास ने।
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गाने के बोल:
पिंजरे के पंछी रे, तेरा दर्द ना जाने कोए
तेरा दर्द ना जाने कोए
बाहर से तो खामोश रहे तू
बाहर से तो खामोश रहे तू
भीतर भीतर रोये रे,
ए ए ए , भीतर भीतर रोये
तेरा दर्द ना जाने कोए
कह ना सके तू, अपनी कहानी
तेरी भी पंछी, क्या ज़िंदगानी रे
कह ना सके तू, अपनी कहानी
तेरी भी पंछी, क्या ज़िंदगानी रे
विधि ने तेरी कथा लिखी, आँसू में कलम डुबोए
तेरा दर्द ना जाने कोए
तेरा दर्द ना जाने कोए
चुपके चुपके, रोने वाले
रखना छिपा के, दिल के छाले रे
चुपके चुपके, रोने वाले
रखना छिपा के, दिल के छाले रे
ये पत्थर का देश हैं पगले, कोई ना तेरा होय
तेरा दर्द ना जाने कोए
तेरा दर्द ना जाने कोए
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Pinjre ke panchhi re-Naagmani 1957
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