Mar 23, 2010

जो मैं जानती- शबाब १९५४

"जो मैं जानती" इन शब्दों से शुरू होने वाला एक गीत अपने
पिछली पोस्ट के द्वारा सुना और देखा। अब सुनिए लता की ही
आवाज़ में एक और गीत जो १९५४ की फिल्म शबाब से है। इस
गीत का मूड एकदम अलग है, यहाँ नायिका घूंघट में आग लगाने
की बात कर रही है। नायिका नूतन हैं। संगीत नौशाद का है और
इस गीत को लिखा है शकील बदायूनी ने।




गीत के बोल:

जो मैं जानती बिसरत हैं सैयां
जो मैं जानती बिसरत हैं सैयां,
घुँघटा में आग लगा देती,
घुँघटा में आग लगा देती
मैं लाज के बंधन तोड़ सखी
मैं लाज के बंधन तोड़ सखी
पिया प्यार को अपने मान लेती
पिया प्यार को अपने मान लेती

मोरे हार सिंगार की रात गई,
पियू संग उमंग मेरी आज गई
घर आए न मोरे साँवरिया,
घर आए न मोरे साँवरिया
मैं तो तन मन उन पर, हो ओ ओ
मैं तो तन मन उन पर लुटा देती

जो मैं जानती बिसरत हैं सैयां,
घुँघटा में आग लगा देती


मोहे प्रीत की रीत न भाई सखी,
मैं बन के दुल्हन पछताई सखी
मैं बन के दुल्हन पछताई सखी
होती न अगर दुनिया की शरम
होती न अगर दुनिया की शरम
उन्हें भेज के पतियाँ, हो ओ ओ
उन्हें भेज के पतियाँ बुला लेती

जो मैं जानती बिसरत हैं सैयां,
घुँघटा में आग लगा देती

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