May 3, 2010

निर्बल से लड़ाई बलवान की-तूफ़ान और दिया १९५६

एक प्रेरणादायक गीत सुनिए जिसे पंडित भारत व्यास ने लिखा है और
जिसकी धुन बनाई है वसंत देसाई ने। मन्ना डे इस गीत को गा रहे हैं और
ये थोडा बड़ा गीत है। एक बात अच्छी है वो ये कि इस गीत को तीन मिनट
में समटने कि कोशिश नहीं की गई जिससे इस गीत की आत्मा मूल स्वरुप
में मौजूद है और गीत पूर्णता का एहसास दिलाता है। गीत फिल्म में कई बार
सुनाई देता है और नायक के संघर्ष के साथी सा प्रतीत होता है।



गीत के बोल:

निर्बल से लड़ाई बलवान की
निर्बल से लड़ाई बलवान की
ये कहानी है दीये की और तूफ़ान की
ये कहानी है दिये की और तूफ़ान की

इक रात अंधियारी, थीं दिशाएं कारी-कारी
मंद-मंद पवन था चल रहा
अंधियारे को मिटाने, जग में ज्योत जगाने
एक छोटा-सा दिया था कहीं जल रहा
अपनी धुन में मगन, उसके तन में अगन
उसकी लौ में लगन भगवान की
ये कहानी है दिये की और तूफ़ान की

कहीं दूर था तूफ़ान
कहीं दूर था तूफ़ान, दिये से था बलवान
सारे जग को मसलने मचल रहा
झाड़ हों या पहाड़, दे वो पल में उखाड़
सोच-सोच के ज़मीं पे था उछल रहा
एक नन्हा-सा दिया, उसने हमला किया
एक नन्हा-सा दिया, उसने हमला किया
अब देखो लीला विधि के विधान की
ये कहानी है दिये की और तूफ़ान की

दुनिया ने साथ छोड़ा, ममता ने मुख मोड़ा
अब दिये पे यह दुख पड़ने लगा
अब दिये पे यह दुख पड़ने लगा
पर हिम्मत न हार, मन में मरना विचार
अत्याचार की हवा से लड़ने लगा
सर उठाना या झुकाना, या भलाई में मर जाना
घड़ी आई उसके भी इम्तिहान की
ये कहानी है दिये की और तूफ़ान की

निर्बल से लड़ाई बलवान की
ये कहानी है दिये की और तूफ़ान की

फिर ऐसी घड़ी आई
फिर ऐसी घड़ी आई, घनघोर घटा छाई
अब दिये का भी दिल लगा काँपने
बड़े ज़ोर से तूफ़ान, आया भरता उड़ान
उस छोटे से दिये का बल मापने
तब दिया दुखियारा, वो बिचारा बेसहारा
चला दाव पे लगाने, बाज़ी प्राण की
बाज़ी प्राण की
बाज़ी प्राण की
बाज़ी प्राण की
चला दाव पे लगाने, बाज़ी प्राण की
ये कहानी है दिये की और तूफ़ान की

लड़ते-लड़ते वो थका, फिर भी बुझ न सका
उसकी ज्योत में था बल रे सच्चाई का
चाहे था वो कमज़ोर, पर टूटी नहीं डोर
उसने बीड़ा था उठाया रे भलाई का
हुआ नहीं वो निराश, चली जब तक साँस
उसे आस थी प्रभु के वरदान की
ये कहानी है दिये की और तूफ़ान की

सर पटक-पटक, पग झटक-झटक
न हटा पाया दिये को अपनी आन से
बार-बार वार कर, अंत में हार कर
तूफ़ान भागा रे मैदान से
अत्याचार से उभर, जली ज्योत अमर
रही अमर निशानी बलिदान की
यह कहानी है दिये की और तूफ़ान की
निर्बल से लड़ाई बलवान की
ये कहानी है दिये की और तूफ़ान की
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Nirbal se ladayi balwan ki-Toofan aur diya 1956

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