ये रात फिर ना आएगी-महल १९४९
फिल्मों के शीर्षक कहाँ से लिए जाते हैं ये रिसर्च का विषय हो सकता है।
पिछली पोस्ट से मुझे याद आया कि एक और भूतिया फिल्म-महल जो
सन १९४९ की फिल्म है उसमे एक गीत है जिसका मुखड़ा इस प्रकार से है-
ये रात फिर ना आएगी..... गीत राजकुमारी और ज़ोहराबाई अम्बालेवाली
की आवाजों में है जिसे परदे पर सुन रहे हैं दादामुनि यानि कि अशोक कुमार।
मेरा अनुमान है अशोक कुमार को 'दादा' का खिताब बहुत पहले भरी जवानी में
ही मिल गया होगा और 'मुनि' उसमे जुडा होगा शायद फिल्म चित्रलेखा के किरदार
के बाद। फिल्म में संगीत है खेमचंद प्रकाश का। फिल्म से सबसे ज्यादा फ़ायदा किसी
को हुआ तो वो है -लता मंगेशकर जिन्होंने फिल्म में एक गीत-आएगा आनेवाला
गा कर नए युग की शुरुआत की थी जिसे हम फिल्म संगीत से भारी आवाजों की
विदाई का बिगुल कह सकते हैं। बड़े बड़े चक्षु की स्वामिनी नर्तकी झटके ले ले
कर नृत्य कर रही है। नायक को हिलने डुलने का ज़रा भी मौका नहीं मिला गीत में।
गीत के बोल:
छुन छुन घुंघरवा बाजे छुन
कहाँ है ध्यान किसकी धुन
नज़र मिला के बात सुन
ये रात फिर ना आएगी
ये रात फिर ना आएगी
जवानी बीत जाएगी
जवानी बीत जाएगी
ये रात फिर ना आएगी
जवानी बीत जाएगी
जवानी बीत जाएगी
ये मस्त रात बे पिए, नशे में झूमती हुई
ये मस्त रात बे पिए, नशे में झूमती हुई
नज़र को छेड़ती हुई, दिलों को चूमती हुई
नज़र को छेड़ती हुई, दिलों को चूमती हुई
यूँ ही गुज़र गई अगर, खटक रहेगी उम्र भर
हज़ार चाहोगे मगर, चाहोगे मगर
ये रात फिर न आएगी
ये रात फिर न आएगी
जवानी बीत जाएगी
जवानी बीत जाएगी
ये रात फिर न आएगी
जवानी बीत जाएगी
जवानी बीत जाएगी
जवानी गा रही है दिल की धड़कनों के साज़ पर
जवानी गा रही है दिल की धड़कनों के साज़ पर
चलो कहीं भी ले चलो हमारा हाथ थाम कर
चलो कहीं भी ले चलो हमारा हाथ थाम कर
कहाँ की फ़िक्र, कैसा ग़म
हमारा जो है, उसके हम
तुम्हारी जान की क़सम
ये रात फिर न आएगी
ये रात फिर न आएगी
जवानी बीत जाएगी
जवानी बीत जाएगी
ये रात फिर न आएगी
जवानी बीत जाएगी
जवानी बीत जाएगी
0 comments:
Post a Comment