Nov 8, 2010

जीवन से लम्बे हैं बंधु-आशीर्वाद १९६८

जीवन क्षणभंगुर है। सुख-दुःख की अनूभूति नज़रिए पर ज्यादा
निर्भर है। अतः एक एक क्षण को ईश्वरीय प्रसाद समझ कर व्यतीत
किया जाए तो जीवन सार्थक है। सम-दृष्टि भाव जीवन संतुलन
में अहम् भूमिका निभाता है। सयाने कहते है सुख, दुःख हर क्षण का
आनंद लो निर्लिप्त भाव से, आनंद लो मगर उससे जोड़ जुड़ाव मत पालो।
खुशियाँ ऊर्जा देती है मानव को तो दुःख उसके जीवट और इच्छाशक्ति
की परीक्षा लेते प्रतीत होते हैं।

आइये जीवन दर्शन से जुड़ा एक गीत सुनें जो गुलज़ार ने लिखा है और
जिसकी धुन बनाई है वसंत देसाई ने। गायक कलाकार हैं मन्ना डे और
आशीर्वाद फिल्म में इसे फिल्माया गया है अशोक कुमार पर।



गीत के बोल:

जीवन से लम्बे हैं बंधु
जीवन से लम्बे हैं बंधु
ये जीवन के रस्ते
ये जीवन के रस्ते
इक पल थम के रोना होगा
इक पल चलना हँस के
ये जीवन के रस्ते
ये जीवन के रस्ते

जीवन से लम्बे हैं बंधु

राहों से राही का रिश्ता
कितने जनम पुराना
एक को चलते जाना आगे
एक को पीछे आना
मोड़ पे मत रुक जाना
बंधु, दोराहों में फँस के
ये जीवन के रस्ते
ये जीवन के रस्ते

जीवन से लम्बे हैं बंधु

दिन और रात के हाथों नापी
नापी एक उमरिया
साँस की डोरी छोटी पड़ गई
लम्बी आस डगरिया
भोर के मन्ज़िल वाले
उठ कर, भोर से पहले चलते
ये जीवन के रस्ते
ये जीवन के रस्ते

जीवन से लम्बे हैं बंधु

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