जाता हूँ मैं मुझे-दादी माँ १९६६
संगीतकार राजेश रोशन का कोई गीत सुनने के बाद उनके
पिता रोशन का एक गीत ज़रूर याद आता है। पेश है फिल्म
दादी माँ से एक लोकप्रिय गीत। ये मराठी फिल्म जगत के
कलाकार काशीनाथ घाणेकर पर फिल्माया गया है। इसमें
साहित्यिक तुकबंदी है मजरूह सुल्तानपुरी की और कर्णप्रिय
वर्जिश है मोहम्मद रफ़ी की। हलकी घंटियों की आवाज़ रोशन
ने कई गीतों में इस्तेमाल की है। पंक्ति ख़त्म होते ही ताल के
साथ साथ हलकी सी "टुन" की ध्वनि सुनाई देती है। गीत की
विशेषता इसमें बाजे सैक्सोफ़ोन की गायक के साथ जुगलबंदी
है जो गीत की आवश्यकता सी प्रतीत होती है। एक और खासियत
है इस गीत की वो इसकी निरंतरता। इसको एक ही लय में
गुनगुनाना आसान काम नहीं है क्यूंकि गीत की गति ज्यादा है।
पढ़ते रहिये ये ब्लॉग, यादगार गीतों के लिए......
गीत के बोल:
जाता हूँ मैं मुझे अब ना बुलाना
मेरी याद भी अपने दिल में ना लाना
मेरा है क्या मेरी मंजिल ना कोई ठिकाना
जाता हूँ मैं
प्यासा था बचपन जवानी भी मेरी प्यासी
पीछे ग़मों की गली आगे उदासी
प्यासा था बचपन जवानी भी मेरी प्यासी
पीछे ग़मों की गली आगे उदासी
हो हो हो हो ओ, मैं तन्हाई का राही
कोई अपना ना बेगाना
मुझे अब ना बुलाना
मेरी याद भी अपने दिल में ना लाना
मेरा है क्या मेरी मंजिल ना कोई ठिकाना
जाता हूँ मैं
मुझको हंसी भी मिली साये लिए दुःख के
खुल के ना रोया किसी कांधे पे झुक के
मुझको हंसी भी मिली साये लिए दुःख के
खुल के ना रोया किसी कांधे पे झुक के
हो हो हो हो ओ, मेरा जीवन भी क्या है
अधूरा सा इक अफसाना
मुझे अब ना बुलाना
मेरी याद भी अपने दिल में ना लाना
मेरा है क्या मेरी मंजिल ना कोई ठिकाना
जाता हूँ मैं
था प्यार का इक दिया
वो भी बुझा डाला
धुन्धला सा भी कहीं
क्यों हो उजाला
था प्यार का इक दिया
वो भी बुझा डाला
धुन्धला सा भी कहीं
क्यों हो उजाला
हो हो हो हो ओ, अब उन यादों से कह दो
मेरी दुनिया में ना आना
मुझे अब ना बुलाना
मेरी याद भी अपने दिल में ना लाना
मेरा है क्या मेरी मंजिल ना कोई ठिकाना
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