कोई ये कैसे बताये-अर्थ १९८२
आया। मस्तिष्क में ऐसे गीतों से धुंधली यादें दृष्टिपटल पर कुछ साफ़
सी होकर उभरना शुरू हो जाती हैं। ऐसा लगता है कहीं कुछ छूट सा
गया है कुछसमय के बहाव के साथ लपकना रह गया। ऐसे ही सुबह
दोपहर शाम गुज़रजाती है और मन कुछ अज्ञात की तलाश में इधर
उधर भटकना जारी रखताहै। रोजमर्रा की दौड़ तो बस एक बहाना है
मन को थोड़ी देर के लिए फुसलानेका।
विवाहेतर संबंधों पर फ़िल्में बनती रही हैं हिंदी सिनेमा जगत में परन्तु
उनको दर्शकों की खुली स्वीकृति कभी भी प्राप्त नहीं हुई। ऐसी फ़िल्में
अक्सर पुरुष ही ज्यादा देखने जाया करते। कुछ अतिरिक्त मनोबल
वाली महिलाएं भी देख लिया करती मगर अकेले नहीं, अपने खुले विचारों
वाले पतियों के साथ।वैसे मनोबल के मामले में महिलाएं पुरुषों से मीलों
आगे हैं। ये तो प्रकट मनोबल की बातहो रही है बस। जो अप्रकट है वो
अतुलनीय है।
कई बार मैं सोचता हूँ कि कैफ़ी आज़मी ने शबाना के लिए कुछ ख़ास गीत
लिखेहैं और कभी लगता ये मन का वहम है। कैफ़ी तो लाजवाब शायर हैं,
शबाना पर फिल्माए गए गीत का बेहतर होना संयोग मात्र हो सकता है।
ऐसी कई फ़िल्में हैं जिनमे शबाना ने अभिनय किया है और फिल्म के
गीत कैफ़ी आज़मी के लिखे हुए हैं।
गीत के बोल:
कोई ये कैसे बताये के वो तनहा क्यूँ है
वो जो अपना था, वो और किसी का क्यों है
यही दुनिया हैं तो फिर, एसी ये दुनिया क्यों है
यही होता हैं तो, आखिर यही होता क्यों है?
इक ज़रा हाथ बढ़ा दे तो, पकड़ ले दामन
उस के सीने में समा जाए, हमारी धड़कन
इतनी कुर्बत हैं तो फिर फासला इतना क्यों है?
दिल-ए-बरबाद से निकला नहीं अब तक कोई
इक लुटे घर पे दिया करता हैं दस्तक कोई
आस जो टूट गयी हैं फिर से बंधाता क्यों है?
तुम मसर्रत का कहो या इसे गम का रिश्ता
कहते हैं प्यार का रिश्ता हैं जनम का रिश्ता
है जनम का जो ये रिश्ता तो बदलता क्यों है?
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Koi ye kaise bataye-Arth 1981
Artists: Rajkiran, Shabana Azmi
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