मन में किसी की प्रीत बसा ले-आराम १९५१
आज आराम से कुछ पुराने गाने सुनने का मन हुआ तो
फिल्म 'आराम' के भी कुछ गीत सुन लिए। ये कुछ संयोग
जैसा है कि जिस दिन फुर्सत से गीत सुनने का मन होता है
उस दिन ३० के, ४० के और ५० के दशक के गीत याद आते
हैं जैसे उनसे कोई पुरानी रिश्तेदारी हो। फिल्म का संगीत
लाजवाब है। गौर फरमाएं अनिल बिश्वास ने फिल्म 'लाजवाब'
में भी लाजवाब संगीत दिया है। हाँ ये बात सही है कि आराम
उन फिल्मों में से है जिन्हें श्रोताओं और दर्शकों ने भी जवाब में
लाजवाब कहा। प्रस्तुत गीत में प्यानो का बहुत सुन्दर प्रयोग
हुआ है। फिल्म के तीन गीत आप पूर्व में सुन चुके हैं, लगे हाथ
चौथा भी सुन लीजिये। नायक प्रेमनाथ बहुत ही expressive
किस्म के अदाकार थे। इधर उनको प्यानो बजाते देख मुझे
सुनील दत्त याद आ गये। शायद सुनील दत्त प्रेमनाथ के ख़ास
हाव भावों से प्रभावित थे। संगीत निर्देशक के साथ ही साथ
फिल्म के निर्देशक की भी दाद देना पड़ेगी। मधुबाला को इतने
expression बदलते मैंने बहुत ही कम गीतों में देखा है।
आपने कभी ध्यान दिया है कि युवा लड़कियां बात करते करते
गर्दन को ज्यादा घुमाती हैं, या एक ओर टेढ़ा कर लेती हैं, उम्र
गुजरने के साथ साथ गर्दन घुमाना कम होता और बेलन घुमाना बढ़ने
लगता है। मुझे याद है दूसरी कक्षा में एक बाला दो का पहाडा
सुनाते सुनाते खुद १८० के कोण तक घूमती थी और गर्दन को
२७० के कोण में इधर उधार घुमा डालती थी। उसको देख कर ही
हमें अहसास होता था कि पहाडा याद करना कितना कसरती काम है।
तो सुनिए जनाब १० में से १० नंबर वाला गीत। राजेंद्र कृष्ण की
रचनाएँ अपने मदन मोहन के संगीत निर्देशन में अवश्य सुनी होंगी
और सराही भी होंगी, मैंने भी सराही हैं। मदन मोहन को शिकायत रही
कि उनकी रचनाओं को वो प्रतिसाद नहीं मिला जिसके वे हक़दार
थे। इसका जवाब ये गीत है। गाने में सितार के टुकड़े हो या ना हों
वो आम जनता के कानों को स्वीकार्य होना चाहिए। सितार के ऊंचे
सप्तक वाले सुर कानों को ज़रा झनझना देते हैं और ये बाजीगरी शुद्ध
शास्त्रीय संगीत के कार्यक्रमों के लिए ठीक है।
सरलता एक बहुत बड़ा अस्त्र है जिसके बलबूते पर बड़े बड़े किले फतह
किये जाते हैं। ये मूल मंत्र संगीतकार अनिल बिश्वास के शिष्य सी. रामचंद्र
ने भी माना और सी. रामचंद्र से ओर्केस्ट्रा के गुर सीखने वाले संगीतकार
सचिन देव बर्मन ने भी माना। शंकर जयकिशन ने सरलता और शोरगुल
वाली शैली दोनों के बीच एक संतुलन बनाये रखा। यहाँ शोरगुल से मतलब
वाद्य यंत्रों की अधिकता से है, गलत अर्थ ना निकाल बैठें। प्रस्तुत गीत
सौम्यता की एक शानदार मिसाल है। इतने अहिस्ता से गीत गाया जा रहा
है कि कान से लगा के मन तक हलकी सी गुदगुदी का अहसास होता है।
गीत के बोल:
मन में किसी की प्रीत बसा ले
ओ मतवाले, ओ मतवाले
मन में किसी की प्रीत बसा ले
किसी को मन का मीत बना ले
मीत बना ले
ओ मतवाले, ओ मतवाले
मन में किसी की प्रीत बसा ले
इस दुनियाँ में किसी का हो जा
किसी को कर ले अपना
इस दुनियाँ में किसी का हो जा
किसी को कर ले अपना
प्रीत बना ले ये जीवन को एक सुहाना सपना
एक सुहाना सपना
जीवन में ये ज्योत जगा ले
ओ मतवाले, ओ मतवाले
मन में किसी की प्रीत बसा ले
प्रीत सताए प्रीत रुलाए
जिया में आग लगाए
प्रीत सताए प्रीत रुलाए
जिया में आग लगाए
जलनेवाला हँसते हँसते फिर भी जलता जाए
फिर भी जलता जाए
प्रीत के हैं अन्दाज़ निराले
ओ मतवाले, ओ मतवाले
मन में किसी की प्रीत बसा ले
ओ मतवाले, ओ मतवाले
मन में किसी की प्रीत बसा ले
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Man mein kisi ki preet-Aaram 1951
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