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Dec 29, 2017

उजड़ी रे मेरे प्यार की दुनिया-आराम १९५१

राजेंद्र कृष्ण का नाम याद आते ही सी रामचंद्र के संगीत वाले
या मदन मोहन के संगीत वाले गीत याद आ जाते हैं विशेषकर
वो जो लता के गाये हुए हैं. लता मंगेशकर के लिए विशेष गीत
बनाने के मामले में अनिल बिश्वास का काफी बड़ा योगदान है.
अनिल बिश्वास के संगीत को पसंद करने वालों को ये बतलाने
की ज़रूरत नहीं है. तकनीकी दृष्टि से भी उनकी धुनें औरों से
बेहतर हुआ करती थीं.

सुनते हैं फिल्म आराम से राजेंद्र कृष्ण का लिखा गीत जिसे लता
ने गाया है.



गीत के बोल:

बिगड़ बिगड़ के बनी थी क़िस्मत
बन बन के फिर बिगड़ी
बन बन के फिर बिगड़ी

उजड़ी रे
उजड़ी रे मेरे प्यार की दुनिया उजड़ी
उजड़ी रे मेरे प्यार की दुनिया उजड़ी
उजड़ी रे

मेरे मन की आशाओं ने इक तसवीर बनाई
मेरे मन की आशाओं ने इक तसवीर बनाई
तसवीर मिटा दी दुनिया ने तक़दीर बनी और बिगड़ी
उजड़ी रे
उजड़ी रे मेरे प्यार की दुनिया उजड़ी
उजड़ी रे

दिल को लगन है जिसकी नहीं क़िस्मत में मुहब्बत उसकी
दिल को लगन है जिसकी नहीं क़िस्मत में मुहब्बत उसकी
बुलबुल से है फूल जुदा और फूल से बुलबुल बिछड़ी
उजड़ी रे
उजड़ी रे मेरे प्यार की दुनिया उजड़ी
उजड़ी रे मेरे प्यार की दुनिया उजड़ी
उजड़ी रे
…………………………………………………………………
Ujdi re mere pyar ki duniya-Aaram 1951

Artist: Madhubala

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May 30, 2011

मन में किसी की प्रीत बसा ले-आराम १९५१

आज आराम से कुछ पुराने गाने सुनने का मन हुआ तो
फिल्म 'आराम' के भी कुछ गीत सुन लिए। ये कुछ संयोग
जैसा है कि जिस दिन फुर्सत से गीत सुनने का मन होता है
उस दिन ३० के, ४० के और ५० के दशक के गीत याद आते
हैं जैसे उनसे कोई पुरानी रिश्तेदारी हो। फिल्म का संगीत
लाजवाब है। गौर फरमाएं अनिल बिश्वास ने फिल्म 'लाजवाब'
में भी लाजवाब संगीत दिया है। हाँ ये बात सही है कि आराम
उन फिल्मों में से है जिन्हें श्रोताओं और दर्शकों ने भी जवाब में
लाजवाब कहा। प्रस्तुत गीत में प्यानो का बहुत सुन्दर प्रयोग
हुआ है। फिल्म के तीन गीत आप पूर्व में सुन चुके हैं, लगे हाथ
चौथा भी सुन लीजिये। नायक प्रेमनाथ बहुत ही expressive
किस्म के अदाकार थे। इधर उनको प्यानो बजाते देख मुझे
सुनील दत्त याद आ गये। शायद सुनील दत्त प्रेमनाथ के ख़ास
हाव भावों से प्रभावित थे। संगीत निर्देशक के साथ ही साथ
फिल्म के निर्देशक की भी दाद देना पड़ेगी। मधुबाला को इतने
expression बदलते मैंने बहुत ही कम गीतों में देखा है।

आपने कभी ध्यान दिया है कि युवा लड़कियां बात करते करते
गर्दन को ज्यादा घुमाती हैं, या एक ओर टेढ़ा कर लेती हैं, उम्र
गुजरने के साथ साथ गर्दन घुमाना कम होता और बेलन घुमाना बढ़ने
लगता है। मुझे याद है दूसरी कक्षा में एक बाला दो का पहाडा
सुनाते सुनाते खुद १८० के कोण तक घूमती थी और गर्दन को
२७० के कोण में इधर उधार घुमा डालती थी। उसको देख कर ही
हमें अहसास होता था कि पहाडा याद करना कितना कसरती काम है।

तो सुनिए जनाब १० में से १० नंबर वाला गीत। राजेंद्र कृष्ण की
रचनाएँ अपने मदन मोहन के संगीत निर्देशन में अवश्य सुनी होंगी
और सराही भी होंगी, मैंने भी सराही हैं। मदन मोहन को शिकायत रही
कि उनकी रचनाओं को वो प्रतिसाद नहीं मिला जिसके वे हक़दार
थे। इसका जवाब ये गीत है। गाने में सितार के टुकड़े हो या ना हों
वो आम जनता के कानों को स्वीकार्य होना चाहिए। सितार के ऊंचे
सप्तक वाले सुर कानों को ज़रा झनझना देते हैं और ये बाजीगरी शुद्ध
शास्त्रीय संगीत के कार्यक्रमों के लिए ठीक है।

सरलता एक बहुत बड़ा अस्त्र है जिसके बलबूते पर बड़े बड़े किले फतह
किये जाते हैं। ये मूल मंत्र संगीतकार अनिल बिश्वास के शिष्य सी. रामचंद्र
ने भी माना और सी. रामचंद्र से ओर्केस्ट्रा के गुर सीखने वाले संगीतकार
सचिन देव बर्मन ने भी माना। शंकर जयकिशन ने सरलता और शोरगुल
वाली शैली दोनों के बीच एक संतुलन बनाये रखा। यहाँ शोरगुल से मतलब
वाद्य यंत्रों की अधिकता से है, गलत अर्थ ना निकाल बैठें। प्रस्तुत गीत
सौम्यता की एक शानदार मिसाल है। इतने अहिस्ता से गीत गाया जा रहा
है कि कान से लगा के मन तक हलकी सी गुदगुदी का अहसास होता है।




गीत के बोल:

मन में किसी की प्रीत बसा ले
ओ मतवाले, ओ मतवाले
मन में किसी की प्रीत बसा ले
किसी को मन का मीत बना ले
मीत बना ले
ओ मतवाले, ओ मतवाले
मन में किसी की प्रीत बसा ले

इस दुनियाँ में किसी का हो जा
किसी को कर ले अपना
इस दुनियाँ में किसी का हो जा
किसी को कर ले अपना
प्रीत बना ले ये जीवन को एक सुहाना सपना
एक सुहाना सपना
जीवन में ये ज्योत जगा ले
ओ मतवाले, ओ मतवाले
मन में किसी की प्रीत बसा ले

प्रीत सताए प्रीत रुलाए
जिया में आग लगाए
प्रीत सताए प्रीत रुलाए
जिया में आग लगाए
जलनेवाला हँसते हँसते फिर भी जलता जाए
फिर भी जलता जाए
प्रीत के हैं अन्दाज़ निराले
ओ मतवाले, ओ मतवाले

मन में किसी की प्रीत बसा ले
ओ मतवाले, ओ मतवाले
मन में किसी की प्रीत बसा ले
..................................
Man mein kisi ki preet-Aaram 1951

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Oct 29, 2009

बलमा जा बलमा जा-आराम १९५१

युवा लता की आवाज़ का जादू कैसा सर चढ़ के बोला ये
जिनके बाल सफ़ेद हो चुके हैं, उनसे पूछिए। फ़िल्म आराम
का ही एक और गीत आगे पेश है। इसमे सब कुछ है -आवाज़ की
सारी बाजीगरी। जो लोग दूसरी गायिकाओं से लता मंगेशकर की
तुलना करते हैं और कुछ विशेष गुण ढूंढते हैं उनको जरूर एक बार
इस गीत को सुनना चाहिए। अब उनको कौन समझाए कि, सर्वश्रेष्ठ
लता के लिए ही सुरक्षित रखा था ईश्वर ने, तो इसमें आदमी की क्या
हिम्मत, कि प्रारब्ध को बदल सके। मेरा इशारा उन संगीत भक्तों की
तरफ़ है जो एक अंग्रेज़ी का शब्द अक्सर इस्तेमाल करते हैं -
Versatility. वरसेटिलिटी का इससे अच्छा उदाहरण क्या मिलेगा कि
नर्गिस से लेकर प्रिटी जिन्टा पर लता की आवाज़ फिट बैठ जाती है ।
हेलन के लिए भी उन्होंने कई गीत गाये या यूँ कहिये उनसे गवाए गए ।



गाने के बोल:

बालमवा , नादान
बालमवा , नादान
समझाए न समझे
दिल की बतियाँ

बालमवा , नादान
बालमवा , नादान
हो नादान, हो नादान

बलमा जा जा जा
बलमा जा जा जा
अब कौन तुझे समझाए,
ओ, बलमा जा जा जा
बलमा जा

मैं चन्दा की चांदनी हूँ
मैं तारों की रानी
मैं चन्दा की चांदनी हूँ
मैं तारों की रानी

मेरे मतवाले नैनों से
छलके मस्त जवानी
मेरे मतवाले नैनों से
छलके मस्त जवानी

इन नैनों की बलमा तूने
कोई कदर न जानी

ओ, बलमा जा जा जा
बलमा जा जा जा
अब कौन तुझे समझाए
ओ बलमा जा

एक रात की ये महफिल है ये
झूम ले ओ मस्ताने
एक रात की ये महफिल है ये
झूम ले ओ मस्ताने

देख शमा पर आकर
कैसे मरते हैं परवाने
देख शमा पर आकर
कैसे मरते हैं परवाने

जी के मरना, मर के जीना,
पगले तू क्या जाने

ओ, बलमा जा जा जा
बलमा जा जा जा
अब कौन तुझे समझाए
ओ बलमा जा

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मिल मिल के बिछड़ गए नैन-आराम १९५१

अलौकिक गीतों में से एक और आपके लिए पेश है आज ।
लता मंगेशकर के गाये सर्वश्रेष्ठ दर्दीले गीतों में से एक है
फ़िल्म आराम का गीत -मिल मिल के बिछड़ गए नैन।
गीत लिखा है राजेंद्र कृष्ण ने। राजेंद्र कृष्ण द्वारा लिखे गए
गीतों में से आप इसको सर्वश्रेष्ट कह सकते हैं। ये ज़रूरी
नहीं है, गाना अच्छा कहलाने के लिए २-३ पन्ने का हो ।
छोटे गीत भी वही प्रभाव छोड़ते हैं जो बड़े बड़े गीत। बस
फर्क है तो जादुई स्पर्श का। यहाँ ये काम अनिल बिस्वास ने
बखूबी किया है और इसको फ़िल्म का सबसे प्रभावी गीत
बनाया है। मधुबाला की मासूमियत इस गीत को और भी
खूबसूरत बना रही है । इस गीत के बारे में और कुछ
जानकारी देना हेलोजन बल्ब को टॉर्च की रौशनी दिखाने
जैसा होगा। इसके विडियो को उपलब्ध कराने के लिए
राजश्री को हार्दिक धन्यवाद्।



गाने के बोल:

मिल मिल के बिछड़ गए नैन
मिल मिल के बिछड़ गए नैन
गया सुख चैन,
जुदाई आ गई
हाय, जुदाई आ गई

मिल मिल के बिछड़ गए नैन

सजन से मधुर मिलन की रात
हुई एक सपने जैसी बात

सजन से मधुर मिलन की रात
हुई एक सपने जैसी बात

अरे अब रो रो के दिन बैन
गया सुख चैन
जुदाई आ गई
हाय जुदाई आ गई
मिल मिल के बिछड़ गए नैन

किस्मत ने हमारा प्यार लिखा था
जीवन में दिन चार

किस्मत ने हमारा प्यार लिखा था
जीवन में दिन चार

छा गई गम की काली रैन
छा गई गम की काली रैन
गया सुख चैन
जुदाई आ गई
हाय जुदाई आ गई

मिल मिल के बिछड़ गए नैन
गया सुख चैन
जुदाई आ गई
हाय जुदाई आ गई

मिल मिल के बिछड़ गए नैन
........................................................................
 Mil mil ke bichhad gaye nain-Aaram 1951

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Oct 27, 2009

ऐ जान-ए-जिगर - आराम १९५१

कुछ गीत दिल के तारों को झनझना देते हैं। ये उन गीतों में से एक
है। अनिल बिश्वास के संगीत की गुणवत्ता का अंदाजा सहज ही हो
जाता है। मुकेश जैसे सीधे और सरल गायक से भी उन्होंने सरल
बोलों पर एक सरल धुन गवाकर गीत को अमर बना दिया। इस
खूबसूरत गीत के बोल लिखे हैं राजेंद्र कृष्ण ने। आप मुझे ज़रा उस
कलाकार को पहचानने में मदद करिए जो इसको परदे पर गा रहा है ।
अच्छे गीत बनाने के लिए क्लासिकल का ज्ञान और क्लासिकल
सिंगर्स ही नहीं, वरन, बोल और धुन के सही ट्रीटमेंट और श्रोताओं
की पसंद को ध्यान में रखना अति आवश्यक है । अनिल बिश्वास
हर गायक से उसके अनुरूप सबसे बढ़िया निकलवा लिया करते थे ।
मुकेश के गाये सर्वश्रेष्ठ गीतों में इसको शामिल कर सकते हैं आप।




गाने के बोल:

ऐ जान ऐ जिगर
दिल में सामने आ जा
ऐ जान ऐ जिगर
दिल में सामने आ जा
उजड़ी हुई बस्ती को बसाने आ जा

ऐ जान ऐ जिगर

दिल दर्द से बेताब है
ओ जान ऐ तमन्ना

आराम का, पैगाम सुनाने आ जा
आराम का, पैगाम सुनाने आ जा

ऐ जान ऐ जिगर

परवाना बड़ी देर से,
है आस लगाये

ऐ शम्मा न कर देर
जलाने आ जा
ऐ शम्मा न कर देर
जलने आ जा

ऐ जान ऐ जिगर

तरसी हुई नज़रों को है
दीदार की हसरत

बरखा की तरह
प्यास बुझाने आ जा

ऐ जान ऐ जिगर
दिल में सामने आ जा
ऐ जान ऐ जिगर
दिल में सामने आ जा
उजड़ी हुई बस्ती को बसाने आ जा

ऐ जान ऐ जिगर
..............................
Ae jaan-e-jigar-Aaram 1951

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