कहाँ तेरा इन्साफ़ है-सरगम १९७९
हर एक को कमियों और अभावों के साथ जीवन मिला
है. किसी को पैसे की कमी, किसी को शांति की कमी,
कोई शारीरिक कष्ट से दुखी है तो कोई पराये सुख से.
इंसान के मन का गुबार फूटता है एक ना एक दिन
जब उसे किसी बात का जवाब या हल नहीं मिलता.
वो ईश्वर के सम्मुख अपनी शिकायत प्रस्तुत करता है.
सुनते हैं फिल्म सरगम से एक गीत रफ़ी की आवाज़
में. आनंद बक्षी की रचना है और लक्ष्मी प्यारे की धुन.
गीत के बोल:
जाग आँखें खोल चुप क्यों है बोल
मेरे भगवन ये क्या हो रहा है
मेरे भगवन ये क्या हो रहा है
कहाँ तेरा इन्साफ़ है कहाँ तेरा दस्तूर है
कहाँ तेरा इन्साफ़ है कहाँ तेरा दस्तूर है
मैं तो हूँ मजबूर ओ भगवन
मैं तो हूँ मजबूर ओ भगवन क्या तू भी मजबूर है
कहाँ तेरा इन्साफ़ है कहाँ तेरा दस्तूर है
कहाँ तेरा इन्साफ़ है कहाँ तेरा दस्तूर है
सब कहते हैं तूने हर अबला की लाज बचाई
आज हुआ क्या तुझको तेरे नाम की राम दुहाई
ऐसा ज़ुल्म हुआ तो होगी तेरी भी रुसवाई
तेरी ही रुसवाई
आँखों में आँसू भरे हैं दिल भी ग़म से चूर है
कहाँ तेरा इन्साफ़ है कहाँ तेरा दस्तूर है
मैं तो हूँ मजबूर ओ भगवन क्या तू भी मजबूर है
कहाँ तेरा इन्साफ़ है कहाँ तेरा दस्तूर है
कैसा अत्याचार है शादी या व्यापार है
दौलत में सब ज़ोर है धर्म बड़ा कमज़ोर है
बिकते हैं संसार में इन्सां भी बाज़ार में
दुनिया की ये रीत है बस पैसे की जीत है
ऐसा अगर नहीं है तो सच भगवान कहीं है तो
सच भगवान कहीं है तो
मेरे सामने आये वो ये विश्वास दिलाए वो
मेरे सामने आये वो ये विश्वास दिलाए वो
मेरे सामने आये वो ये विश्वास दिलाए वो
मेरे सामने आये वो ये विश्वास दिलाए वो
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Kahan tera insaaf hai-Sargam 1979
Artist: Rishi Kapoor
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