दयार-ए-दिल की रात में-गुलाम अली गज़ल
गुलाम अली की गाई हुई एक गज़ल है-ये दिल ये पागल
दिल मेरा. इस फिल्म के थोड़े पहले एक एल्बम निकला
मीराज-ए-गज़ल जिसमें गुलाम अली और आशा भोंसले के
स्वर हैं. फिल्म बनने में समय लगता है, गाना पहले रिकोर्ड
हो गया था उसके बाद इस एल्बम पर काम हुआ.
गज़ल प्रेमियों को ये सौगात पसंद आई और उन्होंने इसे
सहेज के रख लिया गाहे-बगाहे सुनने के लिए. इसमें एक
से बढ़ कर एक ग़ज़लें हैं. आज आपको सुनवाते हैं नासिर
काज़मी की लिखी गज़ल जिसे गुलाम अली और आशा भोंसले
ने गाया है. फिल्म सन १९८४ में रिलीज़ हुई थी और अल्बम
निकला था १९८३ में.
गज़ल के बोल:
दयार-ए-दिल की रात में चराग़ सा जला गया
मिला नहीं तो क्या हुआ, वो शक़्ल तो दिखा गया
वो दोस्ती तो ख़ैर अब नसीब-ए-दुश्मनाँ हुई
वो छोटी छोटी रंजिशों का लुत्फ़ भी चला गया
दयार-ए-दिल की रात में चराग़ सा जला गया
जुदाइयों के ज़ख़्म, दर्द-ए-ज़िन्दगी ने भर दिये
तुझे भी नींद आ गई मुझे भी सब्र आ गया
दयार-ए-दिल की रात में चराग़ सा जला गया
ये सुबहो की सफ़ेदियाँ ये दोपहर की ज़र्दियाँ
अब आईने में देखता हूँ मैं कहाँ चला गया
दयार-ए-दिल की रात में चराग़ सा जला गया
ये किस ख़ुशी की रेत पर ग़मों को नींद आ गई
वो लहर किस तरफ़ गई ये मैं कहाँ चला गया
दयार-ए-दिल की रात में चराग़ सा जला गया
पुकारती हैं फ़ुर्सतें कहाँ गईं वो सोहबतें
ज़मीं निगल गई उन्हें या आसमान खा गया
दयार-ए-दिल की रात में चराग़ सा जला गया
गए दिनों की लाश पर पड़े रहोगे कब तलक
अलम्कशो उठो कि आफ़ताब सर पे आ गया
दयार-ए-दिल की रात में चराग़ सा जला गया
..................................................................
Dayare-dil ki raat mein-Meeraz-e-ghazal 1983
0 comments:
Post a Comment