ज़िन्दगी जब भी तेरी बज़्म में-उमराव जान १९८१
फुल टाइम मॉडल हो सकते थे या अभिनेता बन सकते थे.
खैर, होता वही है जो नियति को मंज़ूर होता है. वे गायन के
अलावा किसी और बात के लिए नहीं जाने गए.
अच्छी सूरत और आवाज़ के मालिक तलत अज़ीज़ को फिल्म
लाइन में ज्यादा मौके नहीं मिले मगर जितने भी मिले
उनमें वे अपनी छाप अवश्य छोड़ गए. नमूने के लिए इसी
गीत को लीजिए-उमराव जान के.
तलत अज़ीज़ ऐसे समय पर गायन के क्षेत्र में उतरे जिस समय
जगजीत सिंह का नाम चारों ओर छाया हुआ था. पडोसी देश के
मेहँदी हसन और गुलाम अली की ग़ज़लें ज्यादा सुनी जाती थीं.
आइये गज़ल सुनी जाए जो शहरयार ने लिखी है और इसकी धुन
बनाने का काम खैय्याम ने किया है.
गीत के बोल:
ज़िन्दगी जब भी तेरी बज़्म में लाती है हमें
ये ज़मीं चाँद से बेहतर नज़र आती है हमें
सुर्ख फूलों से महक उठती हैं दिल की राहें
दिन ढले यूँ तेरी आवाज़ बुलाती है हमें
ज़िन्दगी जब भी तेरी बज़्म में लाती है हमें
याद तेरी कभी दस्तक, कभी सरगोशी से
रात के पिछले पहर रोज़ जगाती है हमें
ज़िन्दगी जब भी तेरी बज़्म में लाती है हमें
हर मुलाक़ात का अंजाम जुदाई क्यूँ है
अब तो हर वक़्त यही बात सताती है हमें
ज़िन्दगी जब भी तेरी बज़्म में लाती है हमें
ये ज़मीं चाँद से बेहतर नज़र आती है हमें
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Zindagi jab bhi teri bazm mein-Umrao Jaan 1981
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