Aug 22, 2015

सुलग रही है हुस्न की सिगड़ी-मदमस्त १९५३

नाक सुडकता और खांसता इश्क आना बाकी है फिल्मों में.
मौसम का मिजाज़ जैसे जैसे बदल रहा है, आगे जल्द ही
वो भी आएगा.

आइये सुनें एक हास्य रस से भरपूर गीत फिल्म मदमस्त से
जिसे मोहम्मद रफ़ी ने गाया है. मधुकर राजस्थानी की रचना
को संगीतबद्ध किया है संगीतकार वी बलसारा ने. गुमनामी
किस कदर दुखदायी होती है इसका एक अच्छा उदाहरण है
ये गीत. जिगर से बीडी जलती है और पूरे देश में लोकप्रिय
हो जाती है. हुस्न की सिगड़ी सुलगती है और किसी को भी
दिखलाई नहीं देती. विडम्बना है यही प्रारब्ध की. इस चमक
दमक वाली दुनिया में कई रत्न धूल खा रहे हैं.




गीत के बोल:

सुलग रही है हुस्न की सिगड़ी
आ जा पकाएं प्रेम की खिचड़ी
खायेंगे बैठ के राजा रानी
फिर नैनों की झगडा झगड़ी
दे पछाड धम धम धम
दे पछाड धम धम धम
दे पछाड दे पछाड
दे पछाड धम धम धम धम
दे पछाड धम धम धम

खुली है खिडकी कहाँ हो मैना
तक झांक कर मर गए नैना
खुली है खिडकी कहाँ हो मैना
ताक झांक कर मर गए नैना
कब तक सब्र करे ये मजनू
आ जा छम छम छम छम
कब तक सब्र करे ये मजनू
आ जा छम छम छम छम

दे पछाड धम धम धम धम
आ जा छम छम छम छम

प्यार में तेरे उल्टा का असर है
मैं बाहर हूँ टू भीतर है
प्यार में तेरे उल्टा का असर है
मैं बाहर हूँ टू भीतर है
तेरे बाप के जूते खा के
घुट गया मेरा दम
तेरे बाप के जूते खा के
घुट गया मेरा दम हाय

दे पछाड दे पछाड

दे पछाड धम धम धम धम

आ जा छम छम छम छम
घुट गया मेरा दम हाय

आ जा छम छम छम छम
घुट गया मेरा दम दम दम
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Sulag rahi hai husn ki sigdi-Madmast 1953

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