जुस्तजू जिसकी थी-उमराव जान १९८१
से स्वागत है. आज सुनते हैं १९८१ की फिल्म उमराव जान
से आशा भोंसले का गाया एक मधुर गीत.
बोल शहरयार के हैं और संगीत खैय्याम का. फिल्म के गीत
और इसकी कहानी पर बहुत कुछ लिखा जा चुका है इसलिए
कभी कभी लगता है इसपर चर्चा करना पुरानी लालटेनों और
हैलोजन बल्बों को लालटेन दिखाने जैसा काम होगा.
आपसे पहले ही वादा है इस गीत का विवरण कम से कम देंगे
ऐसा नहीं है कि विवरण के बदले चाट पकौड़ी बनाने का कोई
फार्मूला पेश कर दें. एक बार मैंने सोचा ज़रूर था कि किसी
पोस्ट में चुटकुले पेश किये जाएँ, मगर फेसबुक और व्हाट्स
एप वगैरह के बढते चलन से ये सब तो हमें किसी भी समय
उपलब्ध हो जाता है चाहे हम खाने की मेज़ पर बैठे हों या फिर
संडास में.
गीत के बोल:
जुस्तजू जिसकी थी उसको तो न पाया हमने
इस बहाने से मगर देख ली दुनिया हमने
तुझको रुसवा न किया, खुद भी पशेमाँ न हुये
इश्क़ की रस्म को इस तरह निभाया हमने
जुस्तजू जिसकी थी
कब मिली थी कहाँ बिछड़ी थी, हमें याद नहीं
ज़िंदगी तुझको तो, बस ख़्वाब में देखा हमने
जुस्तजू जिसकी थी
ऐ अदा और सुनाये भी तो क्या हाल अपना
उम्र का लम्बा सफ़र तय किया तन्हा हमने
जुस्तजू जिसकी थी उसको तो न पाया हमने
इस बहाने से मगर देख ली दुनिया हमने
जुस्तजू जिसकी थी
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