Nov 12, 2015

दर्द-ए-दिल दर्द-ए-जिगर–कर्ज़ १९८०

प्यार मोहब्बत का शरीर के भिन्न भिन्न अंगों पर असर
पढता है जैसा कि हमने फ़िल्मी कवियों की कविताएं और
गीत सुन-पढ़ कर समझा अभी तक. ये कभी दिल में होता
है कभी लिवर(जिगर) में, अभी अग्नाशय में तो कभी कभी
अमाशय में.  कभी आँख फडकने लगती है तो कभी हाथ
पाँव. ये कभी कभी दूसरों की शरीर में भी हो जाता है.
प्रेम कोई करे, दर्द किसी को होवे. दूसरों में मित्र, पडोसी,
सहपाठी, लड़की के भाई, कॉम्पीटीटर इत्यादि किस्म के
जीव आते हैं.

फिजिक्स में इंडक्शन नाम का कुछ होता है जिसके दो
प्रकार होते हैं-सेल्फ और म्यूचुअल. प्यार मोह्हबत का
दर्द भी वैसा ही कुछ हो जाता है. ८० के दशक में जब
डिस्को अपनी लोकप्रियता के चरम पर था तब हमने
सुना दर्द-ए-दिल. २००० के आते आते सुनने कोई मिला
दर्द-ए-डिस्को. अब ज़माना दर्द-ए-फेसबुक और दर्द-ए-
व्हाट्स एप का है. सुना है एक मजनू ने अपनी प्रेमिका
को जन्मदिन के अवसर पर ५ किलो तुवर दाल भेंट की
और उसके दर्द-ए-दाल पर थोडा मरहम लगा दिया.

आज सुनते हैं फिल्म क़र्ज़ से एक गीत जो आनंद बक्षी
का लिखा हुआ है और लक्ष्मीकांत प्यारेलाल इस गीत के
कम्पोज़र हैं.  गीत ऋषि कपूर पर फिल्माया गया है और
इसमें वे वॉइलिन भांजते नज़र आयेंगे आपको.



गीत के बोल:

दर्द-ए-दिल, दर्द-ए-जिगर, दिल में जगाया आपने
पहले तो मैं शायर था, आशिक बनाया आपने

आपकी मदहोश नज़रें कर रही हैं शायरी
ये ग़ज़ल मेरी नहीं, ये ग़ज़ल है आपकी
मैंने तो बस वो लिखा, जो कुछ लिखाया आपने
दर्द-ए-दिल, दर्द-ए-जिगर, दिल में जगाया आपने

कब कहाँ सब खो गयी, जितनी भी थी परछाईयाँ
उठ गयी यारों की महफ़िल, हो गयी तन्हाईयाँ
क्या किया शायद कोई, पर्दा गिराया आपने
दर्द-ए-दिल, दर्द-ए-जिगर, दिल में जगाया आपने

और थोड़ी देर में बस, हम जुदा हो जायेंगे
आपको ढूँढूँगा कैसे रास्ते खो जायेंगे
नाम तक भी तो नहीं, अपना बताया आपने
दर्द-ए-दिल, दर्द-ए-जिगर, दिल में जगाया आपने
पहले तो मैं शायर था, आशिक बनाया आपने
दर्द-ए-दिल, दर्द-ए-जिगर, दिल में जगाया आपने
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Dard-e-dil dard-e-jigar-Karz 1980

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