May 31, 2016

ऐ जिंदगी के राही-बहार १९५१

तलत महमूद की मखमली आवाज़ में सुनते हैं  बहार फिल्म का
एक गीत. सन १९५१ की फिल्म  बहार में सभी प्रकार के गीत हैं.
राजेंद्र कृष्ण की विविधता और रेंज इन गीतों से पता चलती है.
एक तो भगवान से शिकायत वाला गीत है फिल्म में तो एक
उम्मीद और हौसला बढ़ाने वाला गीत. प्रस्तुत गीत निराशा से
आशा की ओर ले जानेवाला है. इसमें बड़े ही सटीक अंदाज़ में
कहा गया है-मरने में क्या धारा है, जीने का कर बहाना. दम टूट
जाए से तात्पर्य है-अंतिम सांस तक प्रयासरत रहो.

अक्सर आखिरी सीढ़ी के पहले लोग थक हार जाते हैं और उन्हें
पता ही नहीं होता कि मंजिल एक कदम दूर है या विजय उनकी
प्रतीक्षा कर रही है. वे बस एक कदम पहले ही थक कर हिम्मत
हार बैठते हैं. इस आखिरी सीढ़ी वाला जज्बा जिनमें होता है वे
ही फतह हासिल करते हैं. ये तभी संभव है जब आपके विचार
सकारात्मक हों.




गीत के बोल:

ऐ ज़िंदगी के राही हिम्मत न हार जाना
बीतेगी रात ग़म की बदलेगा ये ज़माना

क्यों रात की सियाही तुझ को डरा रही है
हारे हुए मुसाफ़िर मंज़िल बुला रही है
बस जायेगा किसी दिन उजड़ा जो आशियाना
बीतेगी रात ग़म की बदलेगा ये ज़माना

हाथों से तेरे दामान उम्मीद का न छूटे
दम टूट जाये लेकिन हिम्मत कभी न टूटे
मरने में क्या धरा है जीने का कर बहाना
बीतेगी रात ग़म की बदलेगा ये ज़माना

ऐ ज़िंदगी के राही हिम्मत न हार जाना
बीतेगी रात ग़म की बदलेगा ये ज़माना
……………………………………….
Ae zindagi ke raahi-bahar 1951

0 comments:

© Geetsangeet 2009-2020. Powered by Blogger

Back to TOP