Jun 19, 2016

ये हसरत थी-नौशेरवां-ए-आदिल १९५७

रफ़ी की आवाज़ में सभी कुछ था-भाव, लय, कारीगरी, सुर
और गज़ब का आकर्षण. सी रामचंद्र के साथ रफ़ी के ज्यादा
गीत नहीं हैं मगर ८३ गीत हैं जो मायने रखते हैं. सन ४७
से सन ७७ तक ये सफर चला. हिंदी गीत से शुरू हो के
तेलुगु गीत पर खत्म हुआ. इस सिलसिले में कई मधुर गीत
पनपे और अमर हो गए. ऐसे गीतों में से चुन के टॉप क्लास
गीत आज सुनवाते हैं आपको.

सी रामचंद्र एक ऐसे संगीतकार थे जो गीत के बोलों के हिसाब
से संगीत रचने में माहिर थे. उनका एक फंडा बढ़िया था जो
एस डी बर्मन का भी था-वाद्य यन्त्र गीत पर हावी न हो जाएँ
और गाने की ख़ूबसूरती को खतम न कर दें.  इसी बात को
ध्यान में रखने की वजह से हमें गायकों के ऐसे गीत सुनने
को मिले जिसमें गायकों ने भी अपने प्राण फूँक दिए. फिल्म
के गीत परवेस शम्सी ने लिखे हैं. जीने मरने की अलग वजहें
तो नहीं मगर अलग तरीके से प्रस्तुत हैं गीत में.

पोस्ट ज्यादा लंबा खींच के गोल्ड मैडल नहीं लेना है. किसी
शायराना ब्लॉग पर इस गाने की शान में कसीदे पढ़ लें. वैसे
भी दाद देने वाले आजकल दिख नहीं रहे लगता है जनता की
दाद खुजली सब खतम हो गई किसी करिश्माई दवाई से.

गीत में नायिका का दीदार आपको चंद पलों के लिए ही होगा.



गीत के बोल:

ये हसरत थी के इस दुनिया में बस दो काम कर जाते
ये हसरत थी के इस दुनिया में बस दो काम कर जाते
तुम्हारी याद में जीते, तुम्हारे ग़म में मर जाते

ये दुनिया डूबती तूफ़ान आता इस क़यामत का
ये दुनिया डूबती तूफ़ान आता इस क़यामत का
अगर दम भर को आँखों में मेरी आँसू ठहर जाते

ये हसरत थी के इस दुनिया में बस दो काम कर जाते

तुम्हारी याद आ आ कर मेरे नश्तर चुभोती है
तुम्हारी याद आ आ कर मेरे नश्तर चुभोती है
मेरे नश्तर चुभोती है
मगर न दिल के सारे ज़ख़्म इतने दिन में भर जाते
मगर न दिल के सारे ज़ख़्म इतने दिन में भर जाते

ये हसरत थी के इस दुनिया में बस दो काम कर जाते

कहाँ तक दुख उठाएं
कहाँ तक दुख उठाएं तेरी फ़ुर्क़त और जुदाई के
तेरी फ़ुर्क़त और जुदाई के
अगर मरना ही था एक दिन, न क्यूँ फिर आज मर जाते
अगर मरना ही था एक दिन, न क्यूँ फिर आज मर जाते

ये हसरत थी के इस दुनिया में बस दो काम कर जाते
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Ye hasrat thi-Nausherwan-e-adil 1957

Artists: Rajkumar, Mala Sinha

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