Jun 15, 2016

आदत...बाकी है-कलयुग २००५

कुछ आवाजें हमें सुनाई देती हैं निरंतर या अक्सर और हम सोचते
रहते हैं-कहाँ से आ रही हैं किसकी हैं? ऐसे कुछ गीत भी होते हैं
जो बजते सुनाई देते हैं, हम सुन लेते हैं, विवरण मालूम नहीं होते.
कुछ दिन बाद इनकी बजने की आवृत्ति कम हो जाती है और हम
ज्यादा दिमाग भी नहीं लगते इनके विवरणों पर. ऐसा ज़रूर है कि
इनके सुनाई पढ़ने पर हमारे दिमाग में क्षणिक कुतूहल अवश्य
जागता है और हम जाने के लिए उत्सुक हो जाते हैं फिर से, कौन
गा रहा है और क्यूँ किसलिए किसके लिए गा रहा है.

आज सुनते हैं ऐसा एक गीत जो सन २००५ की पैदाइश है मगर
कभी कभी इसे मिर्ची, अदरक, लहसुन रेडियो सुना दिया करते हैं.

सईद कादरी के बोल हैं, अन्नू मलिक का संगीत है और गायक को
आप पहचानते ही हैं-आतिफ असलम.



गीत के बोल:

जुदा हो के भी तू
जुदा हो के भी तू मुझे में कहीं बाकी है
पलकों में बन के आंसू तू चली आती है
जुदा हो के भी

वैसे जिंदा हूँ जिंदगी बिन तेरे मैं
दर्द ही दर्द बाकी रहा है सीने में
सांस लेना भर ही यहाँ जीना नहीं है
अब तो आदत सी है मुझको ऐसे जीने में
जुदा हो के भी तू मुझे में कहीं बाकी है
पलकों में बन के आंसू तू चली आती है

साथ मेरे है तू हर पल शब् के अंधेरे में
पास मेरे है तू हरदम उजले सवेरे में
दिल से धडकन भुला देना आसान नहीं है
अब तो आदत सी है मुझको ऐसे जीने में
जुदा हो के भी तू मुझे में कहीं बाकी है
पलकों में बन के आंसू तू चली आती है

अब तो आदत सी है मुझको ऐसे जीने में
ये जो यादें हैं ये जो यादें हैं
सभी काटे हैं सभी काटे हैं
कटा दो इन्हें कटा दो इन्हें
अब तो आदत सी है मुझको..................................................
Aadat….baaki hai-Kalyug 2005

Artists-Kunal Khemu, Deepal Shaw

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