रुत आ गई रे-१९४७ अर्थ १९९९
आना, किसी त्यौहार का वक्त आना, कोई खास समय आना.
१९४७ अर्थ फिल्म से ये गीत है जिसे सुखविंदर गा रहे हैं.
जावेद अख्तर के बोल हैं और ए आर रहमान का संगीत.
इसे आमिर खान और नंदिता दास पर फिल्माया गया है.
पतंग उड़ाने का समय मकर संक्रांति के आस पास आता है.
हमारे देश में कई जगह पतंग फेस्टिवल का आयोजन होता
है उस समय.
मैं भी एक ब्रेक लेता हूँ, खाना खाने के बाद रुत हट्टी टगन
की आ गयी है.
गीत के बोल:
रुत आ गई रे रुत छा गई रे
रुत आ गई रे रुत छा गई रे
रुत आ गई रे रुत छा गई रे
रुत आ गई रे रुत छा गई रे
पीली पीली सरसों फूले पीले-पीले पत्ते झूमें
पीहू-पीहू पपीहा बोले चल बाग़ में
धमक धमक ढोलक बाजे
छनक छनक पायल छनके
खनक खनक कंगना बोले
चल बाग़ में
चुनरी जो तेरी उड़ती है उड़ जाने दे
बिंदिया जो तेरी गिरती है गिर जाने दे
चुनरी जो तेरी उड़ती है उड़ जाने दे
रुत आ गई रे रुत छा गई रे
रुत आ गई रे रुत छा गई रे
रुत आ गई रे रुत छा गई रे
गीतों की मौज आई फूलों की फौज आई
नदिया में जो धूप घुली सोना बहा
अम्बुवा से है लिपटी एक बेल बेले की
तू ही मुझसे है दूर आ पास आ
मुझको तो साँसों से छु ले
झूलूँ इन बाहों के झूले
प्यार थोड़ा सा मुझे दे के
मेरे जान-ओ-दिल तू ले ले
रुत आ गई रे रुत छा गई रे
रुत आ गई रे रुत छा गई रे
पीली पीली सरसों फूले पीले-पीले पत्ते झूमें
पीहू-पीहू पपीहा बोले चल बाग़ में
धमक धमक ढोलक बाजे
छनक छनक पायल छनके
खनक खनक कंगना बोले
चल बाग़ में
तू जब यूँ सजती है इक धूम मचती है
सारी गलियों में सारे बाज़ार में
आँचल बसंती है उसमें से छनती है
जो मैंने पूजी है मूरत प्यार में
जाने कैसी है ये डोरी मैं बंधा हूँ जिससे गोरी
तेरे नैनों ने मेरी नींदों की कर ली है चोरी
रुत आ गई रे रुत छा गई रे
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Rut aa gayi re-1947 Earth 1999
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