सावन के झूले पड़े-प्यार की प्यास १९६१
फिल्मों में सावन के ऊपर बहुत से गीत हैं जिन्हें हमने
अभी चुनना शुरू ही किया है. शुरु करते हैं ये सिलसिला
सावन के झूलों से. पहला उल्लेखनीय झूला है फिल्म
प्यार की प्यास से जो सन १९६१ की फिल्म है.
लता मंगेशकर और तलत महमूद का गाया ये गीत काफी
मशहूर हुआ था अपने ज़माने में. भरत व्यास(गीतकार) की
नज़र से देखा जाए सावन के झूले को. गीत में देहाती बोल
की खुशबू है जो इसे मोहक बनाती है. अक्सर आपने गीतों
में गोरी शब्द के आगे संबोधन “ओ” ही सुना होगा. इस गीत
में सम्मान दिया गया है “ओ गोरी जी” के माध्यम से.
गीत के बोल:
कहाँ छुपे हो मन के मितवा
नैना भए उदासे
छलक रहा है सुख का सागर
हम प्यासे के प्यासे
सावन के झूले पड़े
सावन के झूले पड़े
सैंया जी हमें तुम कहाँ भूले पड़े
ये नैना जो तुमसे लड़े गोरी जी
तोरी पलकन के नीचे खड़े
सावन के झूले पड़े
तुम नहीं आए हमको भूले
हमरे अँगना फुलवा न फूले
हमको अकेली देख सहेली
कहती है क्यूँ ना खिलती चमेली
बेलरिया ना मंडवे चढ़े तो
बेलरिया ना मंडवे चढ़े तो
सैंया जी हमें तुम कहाँ भूले पड़े
ये नैना जो तुमसे लड़े गोरी जी
तोरी पलकन के नीचे खड़े
सावन के झूले पड़े
तोरे दिल में हमरा दिल है
जैसे तोरे नैन में तिल है
हमरे मिलन बिन ये मनभावन
सावन भी तो क्या है सावन
पीपल के पतवे झड़े
पीपल के पतवे झड़े
ये तोरे मोरे जब तक न नैना लड़े
सावन के झूले पड़े
सैंया जी हमें तुम कहाँ भूले पड़े
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Sawan ke jhoole pade-Pyar ki pyaas 1961