Jul 31, 2016

एक पंछी बन के-दो गज ज़मीन के नीचे १९७२

हिंदी फिल्मों के संसार में आपको भूतिया और डरावनी फ़िल्में
बहुत मिलेंगी. कुछ भूत वगैरह की वजह से डरावनी बन जाती
हैं तो कुछ इस वजह से-कि फिल्म देखने बैठ जाओ तो उसके
समाप्त होने के लक्षण नहीं दिखाई देते. रामसे बंधुओं ने भूतिया
पिक्चरों को नए आयाम दिए. पहले की फिल्मों में कई ऐसी हैं
जिनमें हास्य नहीं के बराबर होता था. ऐसी फिल्मों में से एक
है-दो गज ज़मीन के नीचे. ये फिल्म अपने समय में काफी
डरावनी मानी जाती थी.

फिल्म में २ गीत हैं इनमें से एक आपको सुनवाते हैं आज.
गीत गाया है वाणी जयराम ने. वाणी को फिल्म गुड्डी के बाद
‘ऐ’ ग्रेड फिल्मों में ज्यादा गीत गाने को नहीं मिले. वसंत देसाई
ने अपनी अंतिम रिलीज़ फिल्म रानी और लालपरी में कुछ गीत
उनसे गवाए उसके अलावा इक्का दुक्का कुछ और संगीतकारों ने
गवाए.

फिल्मांकन से ऐसा लगता है बम्बई-पूना के रास्ते में आने वाली
पहाड़ियों पर इसकी शूटिंग की गई है. पहाड़ी पर चढ़ी नायिका
३० सेकण्ड में मैदान पर आ जाती है और १०० मीटर की दौड
लगाते हुए गीत गाना शुरू करती है. हो हो करती वो अपना
सामान फेंकती है और उसके मुंह से बोल निकलने लगते है गीत
के. इतनी तेज दौड लगाने के बाद भी फ़िल्मी नायिकाएं बिलकुल
नहीं थकती हैं और सधी आवाज़ में गाती हैं. ये सब ओलिम्पिक
में १००/२०० मीटर में दौड़ने वाली युवतियों के लिए आश्चर्य और
जलन का विषय हो सकता है.

गीत आगे बढ़ता है और नायिका फिर पहाड पर चढ जाती है.
अबके बार एक पार्क दिखाई देता है जिसमें कुछ बच्चे झूले
पर झूल रहे हैं जिन्हें नायिका की उछल-कूद से कोई सरोकार
नहीं है, बड़े सीधे साधे बच्चे हैं. बाकी आप गीत में देखिये
क्या हो रहा है.

गीत नक्श लायलपुरी का लिखा हुआ है जिसकी तर्ज़ बनाई है
सपन जगमोहन ने और इसे सुरेन्द्र कुमार और शोभना नामक
कलाकारों पर फिल्माया गया है.



गीत के बोल:

एक पंछी बन के मैं उडती जाऊं
एक पंछी बन के मैं उडती जाऊं
मस्त पवन के संग लहराऊँ
नीलगगन को छूकर आऊँ
एक पंछी बन के मैं उडती जाऊं
एक पंछी बन के मैं उडती जाऊं

बदरा की छैयां में
कोई देखे ये मेरी उड़ानें
बदरा की छैयां में
कोई देखे ये मेरी उड़ानें
मेरे नैनों में सपने सुहाने
मेरा मन तो तेरी ना माने
ना माने ना माने ना माने

एक पंछी बन के मैं उडती जाऊं
एक पंछी बन के मैं उडती जाऊं

चुपके से चोरी से
कोई आएगा निंदिया चुराने
चुपके से चोरी से
कोई आएगा निंदिया चुराने
मेरे बालों में कलियाँ सजाने
बल खायेगा कोई ना जाने
ना जाने ना जाने ना जाने

एक पंछी बन के मैं उडती जाऊं
एक पंछी बन के मैं उडती जाऊं
मस्त पवन के संग लहराऊँ हाँ
नीलगगन को छूकर आऊँ
एक पंछी बन के मैं उडती जाऊं
एक पंछी
......................................................................
Ek panchhi ban ke-Do gaj zameen ke neeche

Artists: Shobhna, Surendra Kumar

1 comments:

Itch of inspiration,  November 27, 2019 at 8:04 PM  

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