खामोश सा अफसाना-लिबास १९९४
कार्य है. अपनी संतुष्टि के लिए आदमी कर तो लेता है, हर बार उसे
उस बात की तारीफ सुनने को नहीं मिला करती. फिर भी जुनूनी लोग
लगे रहते हैं अपनी कला को परवान चढाने में.
गुलज़ार ने कुछ रचनाएँ ऐसी लिखी कि उनको कम्पोज करने के लिए
आर डी बर्मन से बेहतर नाम सूझता ही नहीं. प्रयोगधर्मिता के साथ
अनूठेपन के लिए मशहूर पंचम ने ऐसी ऐसी धुनें बनाईं कि आज की
पीढ़ी के संगीतकार भी अचंभित होते हैं और उनमें से कई तो पंचम
के मुरीद हैं और उनके गीत सुनते सुनते ही बड़े हुए हैं.
आज सुनते हैं लिबास फिल्म से एक गीत जिसका एल्बम तो १९८८
में आ गया था मगर पिक्चर रिलीज़ नहीं हुई. इज़ाज़त फिल्म के
बाद दर्शकों को बेसब्री से गुलज़ार की इस फिल्म का इंतज़ार था.
फिल्म के प्रमुख कलाकार नसीरूदीन शाह, शबाना आज़मी और
राज बब्बर हैं. अभिनय के दिग्गजों से सजी ये फिल्म दर्शकों के
सम्मुख ना आ पाई अफसोसजनक है.
प्रस्तुत गीत लता मंगेशकर और सुरेश वाडकर की आवाजों में एक
युगल गीत है. फिल्म का सबसे लोकप्रिय गीत भी यही है.
गीत के बोल:
ख़ामोश सा अफ़साना पानी से लिखा होता
ना तुम ने कहा होता ना हमने सुना होता
ख़ामोश सा अफ़साना
ला ला ला ला ला ला ला ला
दिल की बात न पूछो दिल तो आता रहेगा
दिल की बात न पूछो दिल तो आता रहेगा
दिल बहकाता रहा है दिल बहकाता रहेगा
दिल को तुमने कुछ समझाया होता
ख़ामोश सा अफ़साना पानी से लिखा होता
ना तुम ने कहा होता ना हमने सुना होता
ख़ामोश सा अफ़साना
सहमे से रहते हैं जब ये दिन ढलता है
सहमे से रहते हैं जब ये दिन ढलता है
एक दिया बुझता है एक दिया जलता है
तुमने कोई हो दीप जलाया होता
ख़ामोश सा अफ़साना पानी से लिखा होता
ना तुम ने कहा होता ना हमने सुना होता
ख़ामोश सा अफ़साना
इतने साहिल ढूँढे कोई न सामने आया
इतने साहिल ढूँढे कोई न सामने आया
जब मँझधार में डूबे साहिल थामने आया
तुमने साहिल हो पहले बिछाया होता
ख़ामोश सा अफ़साना पानी से लिखा होता
ना तुम ने कहा होता ना हमने सुना होता
ख़ामोश सा अफ़साना
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Khamosh sa afsana-Libaas 1988
Artists: Shabana Azmi, Raj Babbar
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