वक़्त से दिन और रात-वक्त १९६५
का संगम मिलता है तो कहीं कुत्ता भी नहीं फटकता. वीरान पड़ी
बस्ती की पहचान ऐसे ही होती है.
वक्त अच्छे अच्छों को हिला देता है. राजा को रंक बनाता है तो
इसके उलट भी करिश्मे दिखला देता है. निवाला हाथ में ही रह
जाता है, मुंह तक नहीं पहुँच पाता ऐसी भी स्तिथि आ जाती है.
आज की जिंदगी की रफ़्तार काफी ज्यादा है और किसी के पास
वक्त के बारे में सोचने का समय नहीं है. वक्त जब हिलाता है
तभी दिमाग में हलचल होती है थोड़ी सी.
आइये सुनें साहिर की रचना रवि के संगीत निर्देशन में जिसे गाया
है मोहम्मद रफ़ी ने. फिल्म का शीर्षक गीत है और पार्श्व में बजता
है.
वक्त एक बहुसितारा फिल्म है जिसमें बलराज साहनी, शशि कपूर,
अचला सचदेव, सुनील दत्त, राजकुमार, साधना, शर्मिला टैगोर जैसे
कलाकार मौजूद हैं. फिल्म आज भी याद कि जाती है और क्लासिक
की सूची में शुमार है.
गीत के बोल:
कल जहाँ बसतीं थीं खुशियाँ
आज है मातम वहाँ
वक्त लाया था बहारें
वक्त लाया है खिज़ां
वक़्त से दिन और रात
वक़्त से कल और आज
वक़्त की हर शै ग़ुलाम
वक़्त का हर शै पे राज
वक़्त से दिन और रात
वक़्त से कल और आज
वक़्त की हर शै ग़ुलाम
वक़्त का हर शै पे राज
वक्त की गर्दिश से है
चाँद तारों का निजाम
वक्त की गर्दिश से है
चाँद तारों का निजाम
वक्त की ठोकर में है
क्या हुकूमत क्या समाज
वक्त की ठोकर में है
क्या हुकूमत क्या समाज
वक़्त से दिन और रात
वक़्त से कल और आज
वक़्त की हर शै ग़ुलाम
वक़्त का हर शै पे राज
वक़्त की पाबन्द हैं
आती जाती रौनके
वक़्त की पाबन्द हैं
आती जाती रौनके
वक़्त है फूलों की सेज
वक़्त है काँटों का ताज
वक़्त है काँटों का ताज
वक़्त से दिन और रात
वक़्त से कल और आज
वक़्त की हर शै ग़ुलाम
वक़्त का हर शै पे राज
आदमी को चाहिये
वक़्त से डर कर रहे
आदमी को चाहिये
वक़्त से डर कर रहे
कौन जाने किस घड़ी
वक़्त का बदले मिजाज़
वक़्त का बदले मिजाज़
वक़्त से दिन और रात
वक़्त से कल और आज
वक़्त की हर शै ग़ुलाम
वक़्त का हर शै पे राज
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Waqt se din aur raat-Waqt 1965
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