मौजों की डोली चली रे-जीवन ज्योति १९७६
गाये उनकी वजहें रहीं मगर जितने भी गाये वे सब अलग से हैं
एक ऐसा ही कर्णप्रिय गीत है फिल्म जीवन ज्योति से गीतकार
आनंद बक्षी का लिखा हुआ.
७० के दशक की तीन ऐसी फ़िल्में हैं जिनके नायक विजय अरोड़ा
हैं और उनमें सलिल का संगीत है. वैसे ये संयोग ही हो सकता है
क्यूंकि सन १९७१ की यादों की बारात और राखी और हथकड़ी फ़िल्में
जिनमें विजय अरोड़ा नायक हैं उनमें आर डी बर्मन का संगीत है.
फिल्म की कास्ट निर्माता और निर्देशक पर निर्भर होती है.
अमूमन शैलेन्द्र के बाद योगेश ने ही सलिल के लिए गीत लिखे
मगर ऐसा लगता है फिल्म के निर्माता या निर्देशक के कहने पर
आनंद बक्षी की सेवाएं ली गयी होंगी गीत लेखन के लिए. गीत की
धुन काफी पहले सलिल ने लता मंगेशकर के लिया बनाये बंगाली
गैर फ़िल्मी गीत में इस्तेमाल की थी.
गीत के बोल:
मौजों की डोली चली रे चली परदेस चली
बगिया से बाबुल की तोड़ के पिया ले चला प्रेम गली रे
मौजों की डोली चली रे चली परदेस चली
बगिया से बाबुल की तोड़ के पिया ले चला प्रेम गली रे
मौजों की डोली चली रे
पनघट तक आयीं सखियाँ सहेलियां
पनघट तक आयीं सखियाँ सहेलियां
रह गयी पीपल की छाँव में सब पहेलियाँ
छूट गई वो गली रे
मौजों की डोली चली रे
नदिया धीरे बहो दुल्हन शर्माए
नदिया धीरे बहो दुल्हन शर्माए
मन हिचकोले खाए घूंघट ना खुल जाए
पवन बड़ी मनचली रे
मौजों की डोली चली रे चली परदेस चली
बगिया से बाबुल की तोड़ के पिया ले चला प्रेम गली रे
मौजों की डोली चली रे चली परदेस चली
बगिया से बाबुल की तोड़ के पिया ले चला प्रेम गली रे
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Maujon ki doli chali re-Jeevan jyoti 1976
Artists: Vijay Arora, Bindiya Goswami
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