मिटा सके तो मिटा ले-कमल के फूल १९५०
अहमियत है जीवन में ये किसी निराशा के दौर से गुज़रे व्यक्रि
से पूछिए. ५० के दशक की शुरुआत से एक गीत सुनते हैं. फिल्म
का नाम है लोटस फ्लोवर्स अर्थात कमल के फूल. गीत लिखा है
हरफनमौला गीतकार राजेंद्र कृष्ण ने और संगीत तैयार किया है
प्रतिभाशाली संगीतकार श्याम सुन्दर ने.
फेमस पिक्चर्स के लिए फिल्म का निर्देशन डी डी कश्यप ने किया
था. इसके प्रमुख कलाकार हैं बद्री प्रसाद, सुरैया, जीवन, लीला मिश्रा,
राज मेंहरा, निरंजन शर्मा, शकुंतला और अमरनाथ.
सुरैया अपने ज़माने की सबसे ज्यादा पसदं की जाने वाली अभिनेत्रियों
में से एक हैं. गायक सुपरस्टार शायद सहगल के बाद वे ही कहलाती
हैं. प्रस्तुत गीत उन्हीं का गाया हुआ है.
बहुत दिनों बाद सूची पर नज़र डाली तो पाया हमने केवल नीलकमल
को शामिल किया है अभी तक ब्लॉग पर. दूसरा किसी भी तरह का
कोई कमल मौजूद नहीं है. ३-४ तरह के कमल मौजूद हैं हिंदी फिल्म
जगत में. आपको धीरे धीरे सबसे मिलवाते हैं.
गीत के बोल:
इधर ग़रीब का दिल है उधर ज़माना है
ये देखना है के किसने किसे मिटाना है
मिटा सके तो मिटा ले दुनिया
मिटा सके तो मिटा ले दुनिया बनाने वाला बना ही देगा
रुला सके तो रुला दे दुनिया हँसाने वाला हंसा ही देगा
मिटा सके तो मिटा ले दुनिया बनाने वाला बना ही देगा
बड़ी ख़ुशी से क़दम-क़दम पर बिछा ले काँटे अरे ज़माने
बड़ी ख़ुशी से क़दम-क़दम पर बिछा ले काँटे अरे ज़माने
गिरा सके तो गिरा ले हमको उठाने वाला उठा ही देगा
गिरा सके तो गिरा ले हमको उठाने वाला उठा ही देगा
मिटा सके तो मिटा ले दुनिया बनाने वाला बना ही देगा
उधर ज़माने की तेज़ आँधी इधर मेरी ज़िंदगी का दीपक
उधर ज़माने की तेज़ आँधी इधर मेरी ज़िंदगी का दीपक
बुझा सके तो बुझा ले दुनिया जलाने वाला जला ही देगा
बुझा सके तो बुझा ले दुनिया जलाने वाला जला ही देगा
मिटा सके तो मिटा ले दुनिया बनाने वाला बना ही देगा
रुला सके तो रुला दे दुनिया हँसाने वाला हंसा ही देगा
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Idhar gareeb ka dil hai-Kamal ke phool 1950