प्यार की राह पर-बड़ी बहू १९५१
लाता और मुकेश ने गाया है.
आपने गीतों में रंगीन शब्द का प्रयोग बहुत सुना होगा. इस गीत
के गीतकार का नाम ही रंगीन है. उनका मूल नाम किसी डबल
पी एच डी साहब को ज़रूर मालूम होगा. ये डबल पी एच डी
साहब लोग बड़े ज्ञानी होते हैं. गायक दाल में सादा नमक डाल
के खाता था या सेंधा नमक, ये तक बतला देते हैं.
अगर जनता अनिल बिश्वास को फिल्म संगीत जगत के पितामह
का दर्ज़ा देती है तो आर सी बोराल प्रपितामह हुए, सीधे शब्दों में
परदादा. इन दोनों के अमूल्य योगदान को कभी भी भुलाया नहीं
जा सकेगा.
गीत के बोल:
प्यार की राह पर क्या भटकने का डर
जब मुसाफ़िर चले साथ मंज़िल चले
जब मुसाफ़िर चले साथ मंज़िल चले
साथ चलते रहे हम यूँ ही उम्र भर
साथ चलते रहे हम यूँ ही उम्र भर
जैसे दरिया चले साथ साहिल चले
जैसे दरिया चले साथ साहिल चले
प्यार की राह पर क्या भटकने का डर
हम चले हम चले हम चले
हम चले तो बहारें चले साथ साथ
फूल बाँधे कतारे चले साथ साथ
फूल बाँधे कतारे चले साथ साथ
कुछ उमंगें इधर कुछ तरंगें उधर
कुछ उमंगें इधर कुछ तरंगें उधर
हम जिधर भी चले साथ महफ़िल चले
हम जिधर भी चले साथ महफ़िल चले
प्यार की राह पर क्या भटकने का डर
तुम मेरे साथ हो हर ख़ुशी साथ है
तुम मेरे साथ हो हर ख़ुशी साथ है
तुम मेरे साथ हो -2 ज़िंदगी साथ है
दिल नज़र में रहे और दिल में नज़र
दिल नज़र में रहे और दिल में नज़र
जब भी बिस्मिल चले साथ क़ातिल चले
जब भी बिस्मिल चले साथ क़ातिल चले
प्यार की राह पर क्या भटकने का डर
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Pyar ki raah mein-badi bahu 1951