कहीं पे निगाहें-सी.आई.डी १९५६
और कहीं पे निशाना टेम्पररी भी हो सकता है और दृष्टि
दोष वाले किसी व्यक्ति को परमानेंट भी.
मजरूह सुल्तानपुरी के बोलों को स्वर शमशाद बेगम ने
दिया है नैयर के संगीत पर. फिल्म का नाम हम ऊपर
लिख ही चुके हैं पहले. नायिका हैं वहीदा रहमान.
गीत के बोल:
कहीं पे निगाहें कहीं पे निशाना
जीने दो ज़ालिम बनाओ न दीवाना
कहीं पे निगाहें कहीं पे निशाना
कोई न जाने इरादे हैं किधर के
मार न देना तीर नज़र का किसी के जिगर पे
नाज़ुक ये दिल है बचाना ओ बचाना
कहीं पे निगाहें कहीं पे निशाना
तौबा जी तौबा निगाहों का मचलना
देख भाल के ऐ दिलवालों पहलू बदलना
क़ाफ़िर अदा की अदा है मस्ताना
कहीं पे निगाहें कहीं पे निशाना
ज़ख़्मी हैं तेरे जायें तो कहाँ जायें
तेरे तीर के मारे हुए देते हैं सदायें
कर दो जी घायल तुम्हारा है ज़माना
कहीं पे निगाहें कहीं पे निशाना
आया शिकारी ओ पंछी तू सम्भल जा
देख जाल है ज़ुल्फ़ों का तू चुपके से निकल जा
उड़ जा ओ पंछी शिकारी है दीवाना
कहीं पे निगाहें कहीं पे निशाना
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Kahin pe nigahen-CID 1956
Artists: Waheeda Rehman, Dev Anand
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