दो दिन की बहारें ख़त्म हुईं-दारा १९५३
भी नहीं बस १९५३ में. फिल्म दारा से एक गीत सुनते हैं लता
का गाया हुआ.
मोहम्मद शफी नाम के संगीतकार ने ये धुन बनाई है. गीत है
सबा अफगानी का. सबा अफगानी का नाम फ़िल्मी गीत सुनने
वाले फिल्म नूरमहल के गीत ‘मेरे महबूब न जा’ से जानते हैं.
ग़ज़ल सुननेवाले जगजीत सिंह की गाई ग़ज़ल ‘गुलशन की
फ़कत फूलों से नहीं’ से पहचानते हैं.
गीत के बोल:
दो दिन की बहारें ख़त्म हुईं
अरमान भरा दिल रो भी दिया
दो दिन की बहारें ख़त्म हुईं
उल्फ़त की कहानी इतनी थी
पाया भी उन्हें और खो भी दिया
दो दिन की बहारें ख़त्म हुईं
उम्मीद का सूरज चमका था
सावन की अँधेरी रात लिये
मालूम न था मिलने की घड़ी
आयेगी जुदाई साथ लिये
क़िस्मत ने हमें धोखा दे कर
आबाद चमन बरबाद किया
दो दिन की बहारें ख़त्म हुईं
फ़रियाद बनी होंठों की हँसी
ग़म दिल की तमन्ना लूट गया
इस गीत छिड़ा धुन रूठ गई
इक तार बजा और टूट गया
इन जागती आँखों से हमने
इक ख़्वाब अधूरा देख लिया
उल्फ़त की कहानी इतनी थी
पाया भी उन्हें और खो भी दिया
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Do din ki baharen-Dara 1953
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