कुछ कहने को आया था-ये कैसा इन्साफ १९८०
सुनाई देते हैं. उदाहरण के लिए सन १९८० की फिल्म से एक गीत
पेश है. अगर मेरे कान सही हैं/थे/होंगे तो मुझे ये गीत कुछ कुछ
बप्पी लहरी के तबेले से निकला सा सुनाई देता है. मगर, ये गीत
है रवीन्द्र जैन के संगीत वाला. ८० के दशक में बप्पी लहरी अपने
पूरे फॉर्म में थे. कई और दूसरों के बनाये गीत भी उनके संगीत जैसे
सुनाई दिया, जिनके बारे में आपको धीरे धीरे बतलायेंगे, हमें अपना
ब्लॉग लंबा जो चलाना है. ५० हज़ार गीत ५ साल में ही सुनवा
के स्वर्ण पदक तो लेना नहीं है किसी से न, ठीक है न ?
राजकिरण और सारिका इस गीत पर हिल डुल रहे हैं. हिलना डुलना
को नाचना तो नहीं कह सकते न आप. वैसे इस तरह से बेफिक्र
हो गाना गाना और झूमना आम जनता को केवल परदे पर देखना
ही नसीब है, वो असल जीवन में ये काम नहीं कर पाती तो परदे
पर ही देख कर मन बहला लिया करती है.
गीत के बोल:
कुछ कहने को आया था
मैं कुछ कहने को आया था
क्या कहना था याद नहीं
अरे याद है बस इतना के कुछ कहना था
कुछ सोच के आई थी
मैं कुछ सोच के आई थी
क्या सोचा था भूल गयी
पर ये नहीं भूली के कुछ कहना था
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Kuchh kehne ko aaya tha-Ye kaisa insaaf 1980
Artits: Rajkiran, Sarika
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