धीरे-धीरे शाम आ रही है-जुम्बिश १९८६
कई ऑफ बीट और कुछ कमर्शियल फिल्मों में संगीत दिया. वे
एक और बात के लिए जाने जाते हैं-नयी प्रतिभाओं को मौका
देने के लिए.
सन १९८६ की फिल्म जुम्बिश का एक गीत है जो उस समय की
उदयीमान गायिका पीनाज़ मसानी और एक अनजान गायिका
शैला गुलवाडी ने गाया है. फिल्म में गीत सलाउद्दीन परवेज़ ने
लिखे हैं जिहोने नर्गिस फिल्म के गीत भी लिखे जिसका संगीत
बासु मनोहारी ने तैयार किया था.
गीत के बोल:
धीरे-धीरे धीरे-धीरे
शाम आ रही है
धीरे-धीरे धीरे-धीरे
शाम आ रही है
धीरे-धीरे धीरे-धीरे धीरे-धीरे
शाम की किताबों में
पतझड़ों की साँसों में
धुँधली धुँधली आँखों में
शाम बढती आ रही है
धीरे-धीरे धीरे-धीरे धीरे-धीरे
शाम आ रही है
धीरे-धीरे धीरे-धीरे धीरे-धीरे
शाम आ रही है
धीरे-धीरे धीरे-धीरे धीरे-धीरे
नींद एक गाँव है नींद की तलाश में
आवाज़ें आ रही है
नींद एक गाँव है नींद की तलाश में
आवाज़ें आ रही है
पाँवों खड़ा बहने
सत सत गा रहे है
शख वाले रंग लिये मोरों के पंखों से
सभ्यता को लिख रहे है
पीपल के पात हरे
धीरे-धीरे गिर रहे हैं
मिट्टी के ढिबले में
खोये खोये जल रहे हैं
पीपल के पात हरे
धीरे-धीरे गिर रहे हैं
धीरे-धीरे गिर रहे हैं
धीरे-धीरे शाम आ रही हैं
मिट्टी बरस ले के शंख चीखने लगे हैं
मिट्टी बरस ले के शंख चीखने लगे हैं
मर्द सब रिवाज़ से बँधे हुए
सरल सपाट उँगलियों से
अपने अपने घर की साहिबान में
अपने अपने घर की साहिबान में
अपने अपने देवताओं के शबीहे लिख रहे हैं
औरतें हथेलियों से चाँद बुन रही हैं
औरतें हथेलियों से चाँद बुन रही हैं
दूध की कटोरियों से सूरजों की आत्मायें
मथ रही हैं
धीरे-धीरे जल रही हैं
धीरे-धीरे बुझ रही हैं
धीरे-धीरे रात आ गयी है
धीरे-धीरे धीरे-धीरे रात आ गयी है
धीरे-धीरे धीरे-धीरे धीरे-धीरे
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Dheere dheere shaam aa rahi hai-Jumbish 1986
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