Jul 7, 2017

साये साये...हरजाईयां-क्वीन २०१४

आपको एक गीत सुनवाया था कुछ समय पहले
मर जाईयां उसके साथ साथ एक और गीत याद
आता है वो आज सुन लीजिए-हरजाईयां. किसी
शब्द के आखिर में ई और यां लगा कर नए शब्द
बनाये जा सकते हैं- क्रिकेटईयां, टेनिसैयाँ इत्यादि.
ये शब्द ऐसे ही हैं जैसे भविष्य की उड़ने वाली कारें
हैं.

अन्विता दत्त गुप्तन के लिखे गीत की तर्ज़ बनाई है
अमित त्रिवेदी ने. इसे नंदनी श्रीकर ने गाया है.




गीत के बोल:

साये साये फिरते हैं जिधर मुडूं
बैठी है रुसवाईयां भी रुसके दूर
बहला फुसला के खुद को नसीहतें करूं
झूठी मूठी सी टूटी फूटी सी
हो धुंधली-धुंधली सी मैं तो इधर-उधर फिरूँ
रूठी रूठी सी

हरजाईयां मिला वो होने को जुदा क्यूं
परछाईयाँ दे के ही मुझे वो गया क्यूं

कांधे ये भारी से दिन को ढो नहीं पाते
चुनती रहूं मैं ये लम्हें गिर क्यूं हैं जाते
क्यूं बुनती मैं रहूँ
किस्मत के धागे
जो खुद ही मैं छीलूँ
उधड़े उधड़े रहम से मैं मिन्नतें करूं
झूठी-मूठी सी टूटी फूटी सी
हो किसको अब ये पड़ी है मैं उखड़ी उखड़ी हूँ
रूठी रूठी सी

हरजाईयां मिला वो होने को जुदा क्यूं
परछाईयाँ दे के ही मुझे वो गया क्यूं
……………………………………………………….
Saaye saaye firte hain…harjaiyan-Queen 2014

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