ये रातें ये मौसम नदी का किनारा-दिल्ली का ठग १९५८
बाद वाली खुमारी और गीत की धुन की खुमारी दोनों मिल
के आदमी को सुला दें.
ऐसे गीतों के साथ एक बात तो तय है ये रात के वक्त सुनने
में ज्यादा अच्छे लगते हैं, रात शब्द का उपस्थित होना एक
बड़ी वजह हो सकती है.
संगीतकार रवि के संगीत में ऐसे युगल गीत कम हैं. इस गीत
के ऊपर कुछ उम्दा पोस्ट आपको नेट पर पढ़ने को मिल जाएँगी
जिनमें यहाँ तक जिक्र है कि किस पंक्ति को गाते वक्त नायक
१ इंच सरका और नायिका ३ डिग्री घूमी. विवरण इतना घना
है ग्राम, तोले और रत्ती में कि उसे गीतकार पढता तो वो भी दांतों
तले उँगलियाँ दबा लेता. इसलिए हम ज्यादा कसीदे नहीं काढ़ेंगे
इस गीत पर.
गीत मजरूह सुल्तानपुरी का है और इसे किशोर संग आशा ने
गाया है. किशोर कुमार और नूतन परदे पर इस गीत की शोभा
बाधा रहे हैं.
गीत के बोल:
ये रातें ये मौसम नदी का किनारा ये चंचल हवा
कहा दो दिलों ने के मिलकर कभी हम ना होंगे जुदा
ये क्या बात है आज की चाँदनी में
के हम खो गये प्यार की रागिनी में
ये बाहों में बाहें ये बहकी निगाहें
लो आने लगा ज़िन्दगी का मज़ा
ये रातें ये मौसम नदी का किनारा ये चंचल हवा
सितारों की महफ़िल ने कर के इशारा
कहा अब तो सारा जहां है तुम्हारा
मोहब्बत जवां हो खुला आसमां हो
करे कोई दिल आरजू और क्या
ये रातें ये मौसम नदी का किनारा ये चंचल हवा
कसम है तुम्हें तुम अगर मुझ से रूठे
रहे सांस जब तक ये बंधन ना टूटे
तुम्हें दिल दिया है ये वादा किया है
सनम मैं तुम्हारी रहूंगी सदा
ये रातें ये मौसम नदी का किनारा ये चंचल हवा
कहा दो दिलों ने के मिलकर कभी हम ना होंगे जुदा
ये रातें ये मौसम नदी का किनारा ये चंचल हवा
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Ye ratein ye mausam-Dilli ka thug 1958
Artists: Kishore Kumar, Nutan
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