छलको छलको ना रस की गगरिया-अनजान १९४१
फिल्म अनजान से. कवि प्रदीप के लिखे गीत की तर्ज़ बनाई
है पन्नालाल घोष ने.
किसी कार्यक्रम में ये गीत गाया जा रहा है और गीत के बाद
नृत्य कला का प्रदर्शन हो रहा है.
गीत के बोल:
छलको छलको ना रस की गगरिया
छलको छलको ना रस की गगरिया
मोरी पनघट पे भीगे चुनरिया
हाँ मोरी पनघट पे भीगे चुनरिया
छलको छलको ना रस की गगरिया-
मोरी पनघट पे भीगे चुनरिया
हाँ मोरी पनघट पे भीगे चुनरिया
आई पीने पिलाने की बेला
हाँ आज पनघट पे प्यासों का मेला
हाँ आई पीने पिलाने की बेला
हाँ आज पनघट पे प्यासों का मेला
देखो लागे ना मोहे नजरिया
हाँ देखो लागे ना मोहे नजरिया
देखो देखो ना लागे नजरिया
मोरी पनघट पे भीगे चुनरिया
हाँ मोरी पनघट पे भीगे चुनरिया
छलको छलको ना रस की गगरिया
मोरी पनघट पे भीगे चुनरिया
हाँ मोरी पनघट पे भीगे चुनरिया
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Chhalko chhalko na ras ki gagariya-Anjaan 1941
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